Thursday, July 31, 2008

यात्रा से जुड़ी जनसुविधाओं से वंचित धौला कुंआ

दिल्ली का धौला कुंआ राजस्थान एवं हरियाणा क्षेत्र से जुड़ी यात्राओं के क्रम में प्रवेश एवं निकास का मुख्य द्वार है। जहां से प्रतिदिन देश के विभिन्न भागों में दिल्ली होकर सैंकड़ों बसों का आवागमन जारी है। राजस्थान प्रदेश की 44 आगारों से संचालित बसों से हजारों की संख्या में प्रतिदिन यात्री दिल्ली प्रवेश करते समय धौला कुंआ ही प्राय: उतरते हैं जहां से स्थानीय बसों द्वारा व्यापारिक कार्य हेतु दिल्ली के भीतरी भाग में एवं रेल मार्ग द्वारा देश के विभिन्न भागों में जाने की यात्रा प्रारम्भ करते हैं। इसी प्रकार वापसी के दौरान भी राजस्थान एवं हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में जाने हेतु धौला कुंआ आकर ही बस पकड़ने की प्रतीक्षा करते हैं। सांयकाल धौला कुंआ से निकलने वाली अंतर्राज्यीय बसों की प्रतीक्षा करते भटकते हजारों यात्रियों को यहां देखा जा सकता है। देश के विभिन्न भागों से राजस्थान एवं हरियाणा क्षेत्र में गये हजारों यात्री भी वापसी के दौरान इसी धौला कुंआ पर उतरते हैं। जिन्हें रेल द्वारा आगे की यात्रा करनी होती है। नई दिल्ली एवं पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन हेतु धौला कुंआ से ही स्थानीय बसें उपलब्ध हो पाती हैं। इसी तरह नई दिल्ली एवं पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन से उतरकर राजस्थान एवं हरियाणा की ओर यात्रा करने वाले यात्रियों को धौला कुंआ आना ही सुगम होता है। दिल्ली का प्रमुख व्यापारिक संस्थान सदर बाजार, चांदनी चौक, नई सड़क, चावड़ी बाजार भी पुरानी दिल्ली में ही है जहां जाने व वापिस आने के लिए यात्रियों को स्थानीय बसों द्वारा धौला कुंआ ही सुगम पड़ता है। इस प्रमुख द्वार पर स्थानीय बसों का भी जमावड़ा काफी है जिससे हजारों की संख्या में स्थानीय यात्री भी बस में चढ़ते व उतरते देखे जा सकते हैं। इस तरह के महत्वपूर्ण यात्रा प्रसंग से जुड़ा प्रमुख द्वार आज तक यात्रा से जुड़ी तमाम जनसुविधाओं से वंचित है। इस जगह पर धूप, वर्षा से बचाव के लिए बसों की प्रतीक्षा में खड़े हजारों यात्रियों के लिए न तो छत्रछाया है, न ही बैठने के लिए उपयुक्त स्थान। इस जगह पर पानी पीने, शौचालय, मूत्रालय की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इस तरह दिल्ली का यह प्रमुख यात्रा प्रसंग से जुड़ा प्रमुख द्वार आज तक यात्रा से जुड़ी जनसुविधाओं से वंचित है जिससे यात्रियों को काफी असुविधाओं का सामना प्रतिदिन करना पड़ता है। जनसुविधाओं के अभाव में सबसे ज्यादा परेशानी यात्रा के दौरान महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों को उठानी पड़ती है। आज तक इस दिशा में स्थानीय प्रशासन तो मौन है ही राजस्थान एवं हरियाणा के सांसद जो दिल्ली में रहते हैं, वे भी मौन हैं।
हरियाणा के गुड़गांव, रेवाड़ी, नारनौल, महेन्द्रगढ़, चंडीगढ़ आदि प्रमुख नगरों के साथ-साथ राजस्थान के प्रमुख शहर जयपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बाड़मेर, जैसलमेर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, बीकानेर, जोधपुर, सीकर, झुंझुनूं, चुरू आदि स्थानों के लिए नितप्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में दौड़ने वाली बसों से हजारों की संख्या में यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए दिल्ली के इस प्रमुख द्वार पर वैध रूप से कोई स्थान आवंटित नहीं है जबकि इसी प्रमुख द्वार पर इस दिशा में संचालित अंतर्राज्यीय बसों से सबसे ज्यादा यात्री दिल्ली में प्रवेश करते समय उतरते हैं तथा वापसी के दौरान इसी जगह पर आकर इन बसों को पकड़ने के लिए प्रतीक्षारत घंटों खड़े रहते हैं। जबकि दिल्ली प्रशासन अंतर्राज्यीय बस अड्ड महाराणा प्रताप आई.एस.बी.टी., आनन्द विहार एवं सराय काले खां को संचालित कर रखा है। राजस्थान एवं हरियाणा की ओर यात्रा से जुड़ी अधिकांश बसें सराय काले खां से संचालित तो होती हैं परन्तु ये बसें राजस्थान एवं हरियाणा की यात्रा करने वाले यात्रियों से धौला कुंआ ही आकर भरती हैं। इस तरह के परिवेश पर विचार करना बहुत जरूरी है। सराय काले खां एवं आनन्द विहार दोनों अन्तर्राज्यीय आगार दिल्ली के दूसरे छोर पर होने के कारण राजस्थान एवं हरियाणा की यात्रा से जुड़े यात्रियों के लिए उलटे पड़ते हैं जिसके कारण रेल एवं दिल्ली के भीतरी भाग से जुड़े इन प्रदेशों की यात्रा से जुड़े यात्रियों के लिए धौला कुंआ ज्यादा सुगम जान पड़ता है। जिसके कारण सराय काले खां से संचालित बसों के लिए आज भी धौला कुंआ प्रमुख बना हुआ है। परन्तु प्रशासन की दृष्टि में इस तरह के प्रमुख द्वार पर इन अन्तर्राज्यीय बसों के ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है। सांयकाल को धौला कुंआ के निकास द्वार का नजारा कुछ अजीबोगरीब देखने को ही सदा मिलता है। जहां अन्तर्राज्यीय बसों को स्थानीय प्रशासन एक जगह ठहरने नहीं देते, इसके साथ ही इन बसों की प्रतीक्षा में खड़े यात्रियों की भी दुर्दशा शुरू हो जाती है। जो अपने सामान को कंधे पर लटकाए इधर-उधर भटकते नजर आते है। वर्षा आ जाने पर तो इनकी तकलीफ और बढ़ जाती है। धौला कुंआ पर वर्तमान में मेट्रो का कार्य चलने से निकास द्वार की हालत और भी ज्यादा खराब है जहां न तो बसों को खड़े होने की जगह है, न यात्रियों के खड़े होने की। इस तरह के हालात भविष्य में किसी तरह की अप्रिय अनहोनी का कारण न बन जाये, विचारणीय मुद्दा है। सुरक्षा की दृष्टि से भी धौला कुंआ असुरक्षित नजर आने लगा है जहां हजारों की तादाद में क्षण-प्रतिक्षण यात्रा प्रसंग से जुड़े यात्री खड़े होते हैं।
यात्रा प्रसंग से जुड़ा दिल्ली का यह प्रमुख द्वार जनसुविधाओं के अभाव में यात्रियों की परेशानी, असुरक्षा एवं दूषित वातावरण का केन्द्र बन चुका है। शौचालय एवं मूत्रालय नहीं होने से बसों से जुड़े पुरूष यात्रियों द्वारा आस-पास मूत्रालय करने से दूषित वातावरण बनना स्वाभाविक है। हजारों किलोमीटर दूर की यात्रा से जुड़े यात्रियों के लिए इस प्रमुख द्वार पर यात्रा से जुड़ी तमाम जनसुविधाओं का न होना यात्रा के सकारात्मक पहलूओं को भी नकारता है। इस तरह के महत्वपूर्ण परिवेश को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यात्रा से जुड़ी तमाम जनसुविधाओं का अभाव दिल्ली से बाहर निकलते व प्रवेश करते समय यहां यात्रियों को खटकता रहता है।
यात्रा प्रसंग से जब धौला कुंआ की पृष्ठभूमि मुख्य द्वार के रूप में उभरकर सामने ऐन-केन-प्रकारेण अब हो गई है तो इस सत्य को स्थानीय प्रशासन द्वारा स्वीकार कर इस प्रमुख द्वार पर यात्रा से जुड़ी तमाम जनसुविधाएं उपलब्ध कराकर यात्रा के जीवन्त पक्ष को उजागर करने में सकारात्मक रूख अपनाया जाना चाहिए। धौला कुंआ राजस्थान एवं हरियाणा क्षेत्र की यात्रा के संदर्भ में प्रमुख द्वार के रूप में उभर चला है। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए स्थानीय प्रशासन को धौला कुंआ के आस-पास अन्तर्राज्यीय बसों को ठहरने की उपयुक्त व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही इस जगह पर यात्रा से जुड़ी धूप, वर्षा से बचाव हेतु संसाधन, पानी, पेशाब आदि तमाम जनसुविधाओं की तत्काल व्यवस्था कर यात्रा के जीवन्त पक्ष को उजागर करने में पहल करना मानवता के हित में सकारात्मक कदम माना जा सकता है। धौला कुंआ में वनविभाग की पड़ी जमीन के बीच अंतर्राज्यीय बस स्टैंड का छोटा रूप दिया जा सकता है। इस दिशा में राजस्थान एवं हरियाणा प्रदेश से गये सांसदों को जनहितार्थ में संसद में भी सकारात्मक कदम उठाने की पहल की जानी चाहिए।
धौला कुंआ आज अंतर्राज्यीय बसों के साथ-साथ स्थानीय नगरीय बसों का भी प्रमुख द्वार बन चुका है। इस जगह पर धूप, वर्षा से बचाव करते प्रतीक्षारत यात्रियों को बैठने, पीने के पानी, मूत्रालय, शौचालय आदि जनसुविधाओं की व्यवस्था शीघ्र किया जाना यात्रा प्रसंग के तहत जनहितार्थ माना जा सकता है।

1 comment:

not needed said...

प्राची साहेब:
बहुत अच्छा मुदा उठाया आपने. आम आदमी की सुख सुविधायों का ख्याल किसे है? वैसे, आज से १६ वर्ष पहले धौला कुआँ से नारनौल की बस भाग के पकड़ रहा था, जूता पैर से निकल गया, बस तो मेरे लिए कहाँ रूकनी थी! फिर अगली बस पकड़ी.
मैं मुख्यत www.mifindia.org पर लिखता हूँ , लेकिन नारनौल क्षेत्र के लिए एक नयी वेब साईट बनायीं है, देखियेगा:www.narnaul.org