Saturday, March 26, 2011

देश में आरक्षण का संक्रामक रोग

देश में दिन पर दिन आरक्षण का मुद्दा ज्वलंत होता जा रहा हैं । आज यह संक्रामक रोग का रूप धारण कर चुका है । स्वतंत्रता उपरांत सामजिक , आर्थिक रूप से पिछड़ी कुछ जातियों को रहन सहन के स्तर में सुधार हेतु संविधान में पिछड़ी जाति , जनजाति के नाम से आरक्षण की सुविधा प्रदान की गयी । धीरे - धीरे यह व्यवस्था राजनीतिक परिवेश के कारण मुद्दा बन विकृति का स्वरूप धारण करती चली गयी । जहाँ इसका मूल उद्देश्य प्राय : ख़तम ही हो गया । आरक्षण उपरांत सामाजिक एवं आर्थिक रूप से इन जातियों में सुधार होने के वावजूद भी आरक्षण ज्यों का त्यों बना ही नहीं रहा बल्कि मंडल आयोग के तहत देश की कुछ और जातियां इस प्रक्रिया में शामिल कर ली गयी । जिसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । देश में आरक्षण की मांग अन्य जातियों में भी उठाने लगी । राजस्थान में राजनीतिक लाभ के लिए संपन्न जाति जाट को भी पिछड़े वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दे दिया गया जिसके प्रतिकूल प्रभाव से आज पूरा देश प्रभावित हैं । देश में कभी गुजर आन्दोलन छिड़ रहा है तो कभी जाट । वर्त्तमान में जाट आन्दोलन का जो स्वरुप उभरकर सामने आ रहा है , सभी प्रेषण हैं । आरक्षण दर आरक्षण की आग दिन पर दिन बढती ही जा रही है और राजनीतिक दल इसकी तापस में अपनी सियासती रोटी सेकने में मशगुल है । इसी कारण इसे मिटा पाना संभव नहीं है । आज यह संक्रामक रोग का रूप ले चुका है जो धीरे - धीरे देश को चाट जायेगा । इस संक्रामक रोग से देश को बचने के लिए आज जरूरी है कि आरक्षण को जनसँख्या के आधार पर सभी जातियों में बाँट दिया जाय। तभी इस बीमारी से देश को बचाया जा सकता है । आज यह समय कि मांग भी है । - भरत मिश्र प्राची स्वतंत्र पत्रकार