Tuesday, April 28, 2009

लोकतंत्र में आम आदमी की भूमिका


विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में 15वीं लोकसभा के चुनाव होने जा रहे है जहां आज आम आदमी की भूमिका एवं जिम्मेंवारियां काफी बढ़ गई हैं। लोकतंत्र के बेहतर स्वरुप के लिए बेहतर जनप्रतिनिधि का होना बहुत जरुरी हैं। स्वतंत्रता उपरान्त देश में स्थापित लोकतंत्र में आज जिस तरह के जनप्रतिनिधियों की बढ़ोतरी होती जा रही है, जिससे लोकतंत्र का स्वरुप काफी बदल चुका है, सभी भलीभॉति परिचित है। लोकतंत्र के मंदिर संसद एवं विधानसभा परिसर के बदलते हालात जनप्रतिनिधियों के वास्तविक स्वरुप को उजागर कर रहे है, जिनके प्रतिकूल आचरण से आज लोकतंत्र की मर्यादा भंग होती साफ साफ नजर आ रही है। भारतीय लोकतंत्र के बदलते स्वरुप में आज बाहुबलियों एवं अपराधिक प्रव्ृत्ति से जुड़े लोगों का बढ़ता वर्चस्व आसानी से देखा जा सकता है। आज देश के सभी राजनैतिक दल इस तरह की पृष्ठभूमि को प्रश्रय देने में किसी से पीछे नहीं दिखते। भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो यहां सभी करते दिखते परन्तु भ्रष्ट आचरण वाले को टिकट देने में कोई नहीं हिचकते। इस दिशा में इन सभी की सोच एक जैसी ही दिखती है। जो ऐनकेन प्रकारेण लोकसभा की सर्वाधिक सीट पाने का हर संभव प्रयास करते है।
इस तरह के परिवेश की उभरती प्रारम्भिक स्थिति पर मंथन करना जरूरी है जहां से लोकतंत्र का स्वरुप प्रभावित हुआ है। स्वतंत्रता उपरान्त देश में लोकसभा के गठन के समय जनप्रतिनिधियों के चयन किये जाने की प्रक्रिया से धीरे-धीरे यहां के पूंजीपति वर्ग जुड़ते गये। चुनाव उपरान्त ये पूंजीपति वर्ग जीते हुए जनप्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रुप से अपने हित में उपयोग करने लग गये जिससे जनप्रतिनिधियों का स्वरुप जनहितार्थ न होकर स्वार्थमय परिवेश से जुड़ता चला गया। कुछ अंतराल के उपरान्त इस तरह के परिवेश पर देश के बाहुबलियों का प्रभाव भी हावी हो चला, जिससे लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का प्रवेश अलोकतांत्रिक होता चला गया। अर्थबल एवं बाहुबल से प्रभावित लोकतंत्र का कायाकल्प ही बदल गया। आज के बदले इस रुप में अर्थबल एवं बाहुबल के पूर्णत: प्रभाव को देखा जा सकता है जहां इसके समर्थक संसद के अन्दर अब जनप्रतिनिधि का स्वरुप धारण कर चुके है। लोकतंत्र पर अब इन्हीं का कब्जा दिखाई देने लगा है। आज देश का कोई भी राजनैतिक दल इस तरह के परिवेश से परे नहीं है।
लोकतंत्र के बदले इस स्वरुप का खुला नजारा आज हर जगह यहां संसद से लेकर सड़क तक देखने को मिल रहा है। आज किसी भी जनप्रतिनिधि की वाणी पर कोई लगाम नहीं दिखता। संसद सत्र एवं विधानसभा सत्र के दौरान कब कौन सी यहां हरकत हो जाय, किस जनप्रतिनिधि का हाथ उठकर किसका गला पकड़ ले या कपड़ा फाड़ दे कह पाना मुश्किल हैं। सड़क से संसद तक व्याप्त जनप्रतिनिधियों की अलोकतांत्रिक हरकतें से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो। कोई किसी पर रौलर चलाने की बात करता है तो कोई किसी का हाथ काट देने की बात करता है। कहीं मतदान के दौरान मतदाता को डराने - धमकाने की प्रक्रिया देखी जा सकती है तो कहीं मतदाता को लुभाने की प्रवृत्ति। लोकतंत्र के बदले इस हालात में मतदान निष्पक्ष हो जाय, कह पाना मुश्किल है।
आज देश में मंहगाई दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। मंदी के दौर एवं आतंकवाद से देश अलग से ही जूझ रहा है। क्षेत्रवाद की लहर पग पसारती जा रही है। लोकतंत्र में अपराधी, असमाजिक, बाहुबली, का प्रवेश तेजी से जारी है। ऐसे समय में लोकतंत्र में आम आदमी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण बन जाती है। वह किसे अपना जनप्रतिनिधि बनाता है। यह आदमी की सोच एवं उसके विवेक पर निर्भर करता है। उसकी सकरात्मक सोच ही लोकतंत्र के बिगड़ते स्वरुप को बेहतर ढ़ंाचा में ढ़ाल सकती हैं। 16 अप्रेल से देश में लोकसभा चुनाव की मतदान प्रक्रिया शुरू हो गई है जो 13 मई तक जारी रहेगी। इस दौरान उड़ीसा एवं आंध्रप्रदेश के विधानसभा चुनाव भी होने जा रहे है। इस चुनाव के दौरान देश का आम आदमी सही लोकतंत्र की स्थपना में कितना जागरुक हो पाता है, यह चुनाव उपरान्त ही पता चल पायेगा। पर लोकतंत्र की सही तस्वीर आम आदमी की सजगता एवं सकरात्मक भूमिका पर ही निर्भर है।