राजनीतिक परिवेश में प्रदेश की राजनीति के बीच कांग्रेस की ओर परंपरागत चले आ रहे जाट बाहुल्य वोट को अलग-थलग कर अपनी ओर खींचने के उद्देश्य से पूर्व में केन्द्र की तत्कालीन एन.डी.ए. गठबंधन सरकार के प्रमुख घटक भाजपा द्वारा जाट वर्ग को पिछड़े वर्ग में शामिल किये जाने की घोषणा एवं चुनाव के दौरान इस वर्ग द्वारा भाजपा को पहली बार मिले अपेक्षित से भी ज्यादा रूझान के उपरान्त अमल की प्रक्रिया से प्रदेश की राजनीति में आये परिवर्तन ने आरक्षण के इस स्वरूप को उभार दिया जहां पिछड़े वर्ग में पूर्व से चली आ रही जातियां जाट वर्ग के शामिल होने से दबी-दबी महसूस करने लगी। पिछड़े वर्ग में जाट वर्ग के शामिल होने से इस वर्ग के तेज तर्रार युवा पीढ़ी द्वारा शीघ्र ही पूर्व से चली आ रही जातियों के युवा पीढ़ी को पीछे ढकेल दिया। इस तरह के परिवेश ने इस वर्ग में शामिल जातियों को अन्य वर्ग में शामिल किए जाने को लेकर पूरे प्रदेश में आंदोलन का एक नया रूप दे दिया जहां पिछड़े वर्ग में शामिल गुर्जर, माली आदि ने पिछड़े वर्ग के वर्गीकरण की मंशा के साथ अपने-आपको अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की मांग कर डाली। इस तरह के परिवेश ने प्रदेश में एक बार सम्पूर्ण गुर्जर जाति को इस तरह के आंदोलन के मार्ग पर धकेल दिया जहां पूरा प्रदेश एक बार फिर से अशांत हो चला। अनुसूचित जनजाति में पूर्व से एकाधिकार आरक्षण का लाभांश ले रहे मीणा जातियों में अपने अधिकार के बंटवारे के प्रसंग को लेकर विरोधी ज्वाला धधक उठी। मीणा एवं गुर्जर आमने-सामने हो चले तथा दोनों सरकार पर अपने-अपने तरीके से दबाव बनाते नजर आने लगे। इस तरह के हालात पर प्रदेश के पिछड़े वर्ग में शामिल अन्य जातियां भी बड़े गौर से मूक दर्शक बन पैनी दृष्टि गड़ाए प्रतिफल का इंतजार कर रही थी। यदि गुर्जर जाति के दबाव वश सरकार अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की मंशा बना भी लेती तो अन्य जातियों में भी आंदोलन भड़कने का अंदेशा उसे हो चला था। सरकार के लिए इस तरह की मंशा को मान लेना, या मानकर प्रस्ताव भेज देना कतई संभव नहीं था। वही हुआ, इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो गई। प्रदेश सरकार केन्द्र के सिर इस समस्या को डाल निजात पाने का मार्ग तलाशने लगी, परन्तु उसे कोई खास सफलता नहीं मिली। स्वार्थ परिवेश से उपजे इस तरह की समस्या का निदान स्वाभाविक रूप से सही मायने में किसी के पास भी एक दूसरे पर डालने के सिवाय कुछ और नहीं है।
आरक्षण की आग निश्चित तौर पर धीरे-धीरे मानवता को दाग-दाग करती देश की एकता, अखंडता, अस्मिता के लिए गंभीर चुनौतियां बनती जा रही है। जहां अलगाववादी लहर की बू समाई हुई है। देश की प्रतिभाएं कुंठित होती जा रही है। देश की आजादी में सभी वर्ग का प्रतिनिधित्व एक समान रहा है। देश को आजादी मिलने के साथ ही सामाजिक परिवेश में एकरूपता लाने के उद्देश्य से आरक्षण की पनपी स्थिति आज धीरे-धीरे राजनीतिक परिवेश के कारण असंतोष की ज्वाला का रूप धारण कर चुकी है। जिसकी चपेट में आकर आज सम्पूर्ण मानव जाति कलंकित होने के कगार पर खड़ी दिखाई देने लगी है। जहां फिर से पूर्व की भांति वर्ग विभेद का एक नया साम्राज्य उभरता दिखाई देने लगा है। आरक्षण से लाभान्वित वर्गों में बेहतर सुधार होने के उपरान्त भी इस प्रक्रिया से अलग-थलग होने की मानसिकता न उभरती दिखाई दे रही, न भविष्य में उभरने की संभावना है। जिसके कारण नये वर्ग विभेद के साथ-साथ एक दूसरे के बीच पृथकतावादी प्रवृत्तियां जन्म लेने लगी है।
आरक्षण से उभरते परिवेश को आज नये सिरे से मंथन की महती आवश्यकता है जिसके विकृत रूप से मानवता कलंकित न होने पाये, इस दिशा में सभी की सोच सकारात्मक होना बहुत जरूरी है। देश को आजादी काफी संघर्ष उपरान्त मिली है, आरक्षण से उपजी आग में इस आजादी को मिटाने की दिशा में तत्पर दिखाई दे रही है, जहां देश की एकता, अखंडता खतरे में नजर आने लगी है। इस तरह की विकट परिस्थिति से देश को बचाने के लिए आरक्षण की आग को गैर राजनीतिक तरीके से बुझाना बहुत जरूरी है। इस तरह की आग में पूरा देश पूर्व में भी जलता रहा है तथा राजनीतिक दलों द्वारा उस आग में स्वार्थमयी रोटियां सेंकी जाती रही है। मंडल आयोग के दौरान युवा पीढ़ी में उभरे आक्रोश, आत्मदाह की वेदनापूर्ण घटनाएं एवं असीमित जान-माल की क्षति को नकारा नहीं जा सकता। आरक्षण के मुद्दे पर देश में जब-जब भी आंदोलन हुए नये जातीय संघर्ष के साथ-साथ देश टूटने के करीब पहुंचता रहा है। फिर भी राजनीतिक दलों द्वारा स्वार्थ हेतु इस तरह की अनैतिक गतिविधियों को हवा देने की प्रक्रिया यहां रही है। इस तरह की गतिविधियों को राष्ट्रहित में रोका जाना बहुत जरूरी है। आरक्षण्ा से उभरे आंदोलन की आग को तत्काल बुझाने के सार्थक प्रयास नहीं किये गये तो यह आग सभी को जलाकर भस्म कर देगी। इस शाश्वत सत्य को सभी राजनीतिक दलों को स्वीकार कर इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने का प्रयास करना चाहिए। स्वार्थमय परिवेश से जुड़ी राजनीति से जुड़े आरक्षण को समाप्त कर पाना आज संभव तो नहीं रह गया है परन्तु संख्याबल के आधार पर इसे सभी वर्गों में बांटकर इससे उपज रही आग को ठंडा किया जा सकता है। आज गरीबी सभी वर्गों में एक समान दिख रही है। इस परिवेश के आधार पर सभी वर्गों में संख्या के अनुपात में इसका लाभ दिया जाना ज्यादा प्रासंगिक बन सकता है। स्वहित की राजनीति त्याग कर आरक्षण की आग को रोकने की दिशा में सकारात्मक पहल किये जाने की महती आवश्यकता है।
-स्वतंत्र पत्रकार, डी-9, IIIए, खेतड़ीनगर-333504 (राज।)