Wednesday, May 21, 2008

लोकतंत्र में जनचर्चा सर्वोपरि होती है

राजस्थान प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती दिखाई देने लगी है। सत्ता तक पहुंचने के प्रयास में कांग्रेस एवं भाजपा दोनों राजनीतिक दल की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रियता नजर आने लगी है। वर्तमान प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा अपने कार्यकाल में किये गये विकास कार्यों के आंकड़े जनता के समक्ष अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से रखने की योजना बना रही है तो वहीं विपक्ष में बैठी कांग्रेस पुन: सत्ता तक पहुंचने के प्रयास में जनता के समक्ष वर्तमान सरकार को भ्रष्टाचार पैमाने पर गलत ठहराने की भरपूर कोशिश कर अपना पक्ष मजबूत बनाने में लगी हुई है। इस दिशा में जगह-जगह दोनों राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सम्मेलन एवं उसमें जारी संवाद के स्वरूप को देखा जा सकता है।
जहां भाजपा श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व में पूर्व की भांति विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है वहीं कांग्रेस अभी प्रदेश में नेतृत्व के मसले में भटकती नजर आ रही है। जातीय समीकरण पर आधारित वोट बैंक बिखरने के भय से कांग्रेस नेतृत्व की घोषणा में कतराती नजर आ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम पर कांग्रेस के भीतर जहां उपरोक्त परिवेश के कारण आम सहमति नहीं बन पा रही है वहीं प्रदेश में पूर्व नेतृत्वधारी के नाम पर भी कहीं न कहीं विवाद उलझता दिखाई दे रहा है। वैसे विधानसभा चुनाव उपरान्त कांग्रेस की बेहतर स्थिति होने पर पुन: अशोक गहलोत का नाम नेतृत्व में उभरने की आम चर्चा तो बनी हुई है परन्तु जातीय समीकरण पर आधारित वोट बैंक के टूटने के खतरे से फिलहाल कांग्रेस की केन्द्रीय समिति भी मौन है। नेतृत्व के मसले पर मंथन जारी है। वर्तमान खान मंत्री शीशराम ओला, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष परसराम मदेरणा, पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर आदि के नाम की चर्चा तो जारी है परन्तु किसी भी एक नाम पर आम सहमति बनती नहीं दिखाई दे रही है। पूर्व में मध्यप्रदेश के राज्यपाल एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के नेतृत्व की भी कहीं से गंध आती दिखाई तो दी परन्तु इस दिशा में स्थिति साफ नजर नहीं आई। वैसे कांग्रेस में इस नाम पर आम सहमति बन तो सकती है, जिनसे जातीय आधार पर टिके वोट बैंक के बिखरने के कम आसार नजर आते दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस में फिलहाल यही एक नाम ऐसा दिखाई दे रहा है जो दोनों पक्षों को संतुलित करते हुए कांग्रेस को वर्तमान संकट से उभार सके परन्तु इस तरह के परिवेश के लिए इस नाम को राज्यपाल पद से अलग रखकर ही विचार करना तर्कसंगत हो सकता है।
जहां तक प्रदेश में सरकार की कार्यशैली पर वर्तमान सत्ता पक्ष भाजपा की स्थिति पर चर्चा की जाय तो आम चर्चा में इस सरकार की पुन: वापसी दिखाई दे रही है। वर्तमान सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षा एवं अन्य क्षेत्रों में नई नियुक्तियां कर युवा पीढ़ी को संतुष्ट करने का जहां प्रयास किया है, वहीं कर्मचारी वर्ग, व्यापारी एवं किसान वर्ग को भी अपनी कार्यशैली से संतुष्ट रखने की भरपूर कोशिश की है। वर्तमान हालात में सरकार के कार्य से किसी भी वर्ग में विशेष असंतोष नजर नहीं आ रहा है, जिससे वोट बैंक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। इस दिशा में पूर्व में कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में रोजगार नहीं मिलने से युवा पीढ़ी में जहां भारी असंतोष व्याप्त रहा, वहीं सरकार की कार्यशैली एवं कर्मचारी वर्ग के प्रति उपेक्षापूर्ण नीति से कर्मचारी वर्ग में भी भारी असंतोष फैला हुआ था। जिसका परिणाम विधानसभा चुनाव उपरान्त देखने को साफ-साफ मिला। मीडिया में नं. 1 मुख्यमंत्री के रूप में छाये तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में सत्ताधारी कांग्रेस अल्पमत में आ गई तथा विपक्ष में बैठी भाजपा श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सत्ता तक पूर्ण बहुमत के साथ पहुंच गई। जनता जनार्दन है। वह सबकुछ देखती, सोचती एवं समझती है। जनता को भुलावे की राजनीति में रख पाना अब उतना आसान नहीं रह गया है। इस तरह के हालात में सरकार के कार्यों की रूपरेखा एवं उसके पड़ते अनुकूल/प्रतिकूल प्रभावों की स्थिति चुनाव परिणाम को प्रभावित करती हैं। गुजरात प्रदेश में पार्टी स्तर पर तत्कालीन नेतृत्व का विरोध होने के बावजूद भी विकास पर जनता-जनार्दन के बीच जनित आस्था ने फिर से नेतृत्व को सबलता प्रदान की, जिसे नकारा नहीं जा सकता। यही मापदंड राजस्थान प्रदेश में भी उभरते देखे जा सकते हैं।
प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एवं भाजपा के साथ-साथ भाकपा, माकपा, बसपा, सपा, लोकजनशक्ति, लोकदल सहित अनेक राष्ट्रीय/क्षेत्रीय दल भी अपनी-अपनी पृष्ठभूमि उभारते नजर आयेंगे। इन दलों में उत्तरप्रदेश की सत्ताधारी बसपा उत्तरप्रदेश की सीमा से जुड़े प्रदेश की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर अपना प्रभाव दिखा तो सकती है परन्तु पूरे प्रदेश में इस पार्टी के वोट बैंक कांग्रेस को ही अंतत: नुकसान पहुंचाते नजर आ रहे हैं। प्रदेश में वर्तमान सरकार के कार्यकाल में आरक्षण को केन्द्र में रखकर उभरा गुर्जर समुदाय का आंदोलन प्राय: निष्प्रभाव होता दिखाई देने लगा है। इस आंदोलन से जुड़े नेतृत्व धीरे-धीरे अपने खेमे की ओर जाते दिखाई देने लगे हैं। कांग्रेस एवं भाजपा दोनों को टिकट वितरण से उपजे संकट का मोल चुकाना पड़ सकता है।
प्रदेश में अभी हाल ही में हुए आतंकवादी बम विस्फोट से राजनीतिक चहलकदमी को थोड़ी देर के लिए विराम तो लग चुका है, परन्तु जैसे-जैसे चुनाव की तिथि नजदीक आती जायेगी, इस तरह की घटनाएं भी चुनावी मुद्दे का स्वरूप धारण करती जायेगी। जहां आरोप-प्रत्यारोप के बीच सभी राजनीतिक दल स्वहित में अपने उत्तरदायित्व को नकारते नजर आयेंगे।
लोकतंत्र में जनचर्चा सर्वोपरि होती है। जो जनमत का स्वरूप धारण करती है। गुजरात चुनाव के परिदृश्य जहां तत्कालीन भाजपा नेतृत्व के अंर्तविरोध के बावजूद भी जनचर्चा में विकास कार्यों के बारे में की गई चर्चा ही चुनाव परिणाम के रूप में उभरकर सामने आई। जिसे नकारा नहीं जा सकता। इसी तरह इस बार प्रदेश में भी सत्तापक्ष के वर्तमान नेतृत्व के तहत रोजगार एवं विकास क्षेत्र की नई उपलब्धियों की चर्चा विशेष रूप से जनचर्चा के तहत समायी है। कर्मचारी वर्ग को भी संतुष्ट रखने की कुशल नीति प्रशासनिक तौर पर देखी जा सकती है। आरक्षण नीति के तहत असंतुष्ट गुर्जर वर्ग को विशेष पैकेज देकर संतुष्ट करने का प्रयास भी इस कड़ी में देखे जा सकते हैं। इस तरह वर्तमान नेतृत्व द्वारा युवा, महिला, कर्मचारी सहित अन्य वर्गों को भी संतुष्ट रखने के हरसंभव प्रयास दिखाई दे रहे हैं। जिससे विपक्ष में खड़ी कांग्रेस को मुद्दे की तलाश में भटकते हुए देखा जा सकता है। चुनाव के दौरान प्रदेश की राजनीति किस करवट पलट खायेगी, यह तो समय ही बतला पायेगा परन्तु फिलहाल जनचर्चा में सत्ता की गेंद एक बार फिर से सत्ता पक्ष के पास ही जाती दिखाई दे रही है। प्रदेश के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। विधानसभा चुनाव उपरान्त लोकसभा के चुनाव भी शीघ्र होने की कगार पर हैं। हर चुनाव में जनचर्चा ही जनमत के रूप में उभरकर सामने आती रही है। इन चुनावों में भी जनचर्चा जनमत के रूप में उभरकर सामने आयेगी जहां महंगाई, आतंकवाद एवं विकास के मुख्य मुद्दे के रूप में उभरते नजर आयेंगे। प्रदेश के चुनाव इस तरह के परिवेश से अछूते नहीं रहेंगे।
-स्वतंत्र पत्रकार, डी-9, IIIए, खेतड़ीनगर-333504 (राज.)

No comments: