Thursday, May 15, 2008

महिला आरक्षण की प्रासंगिकता

भारी हंगामे एवं उभरते विरोधी स्वर के बीच यूपीए सरकार द्वारा महिला आरक्षण विधेयक राज्य सभा में अंतत: पेश कर ही दिया गया। जबकि इस विधेयक के पक्ष में विपक्षी भाजपा के साथ बसपा का सकारात्मक रूख रहा। राजद, समाजवादी पार्टी, जद (यू) ने इस विधेयक का विरोध किया। जबकि यूपीए गठबंधन के कुछ सहयोगी नेताओं द्वारा अपने दल के विरोधी रवैये के बावजूद भी मौन समर्थन जारी रहा। अपनी-अपनी राजनीति, अपना-अपना रंग। राजनीतिक लाभ की दृष्टि से इस विधेयक पर जारी समर्थन व विरोध की रणनीति के बीच फिलहाल कई वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ा विधेयक राज्यसभा के पटल पर तो पहुंचा। आगामी सत्र में इसका स्वरूप यहां के राजनीतिक दलों का महिला आरक्षण के प्रति स्वहित में उभरते परिवेश पर निर्भर करेगा। जहां पुरूष प्रधान समाज में महिला आरक्षण की प्रासंगिकता सदैव ही विवादास्पद बनी रही है। इस दिशा में पंचायतीराज में लागू आरक्षण से उभरते परिवेश को देखा जा सकता है। इसी प्रकार महिला आरक्षण विधेयक को लेकर तमाम सरकारी/गैरसरकारी आश्वासनों के बावजूद अभी भी लगातार अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। जब भी यहां संसदीय सत्र का शुभारंभ होता है, सत्र शुरू होने के पहले व अंत तक यह मामला जोरों से आज तक उछाला जाता रहा है और अंतत: अगले सत्र की प्रतीक्षा के साथ सब कुछ टाय-टाय-फिस्स होकर रह जाता है। पूर्व में शीतकालीन सत्र में इस विधेयक के बारे में संसद में सकारात्मक चर्चा किये जाने की पहल सत्र शुभारंभ से पहले ही शुरू तो हो गई थी परन्तु इस दिशा में किसी भी तरह की सत्ता पक्ष या विपक्ष की ओर से ठोस कदम नहीं उठाये जाने से इस विधेयक के प्रति उभरते दोहरे भाव को नकारा नहीं जा सका। राज्य सभा के बीच महिला सांसद प्रतिनिधियों में पहली बार विरोधी स्वर का उफान देखा गया। शीतकालीन सत्र की समाप्ति पर लोकसभा एवं विधानसभा में महिलाओं को आरक्षण देने के लिये फिर से आगामी बजट सत्र में विधेयक लाये जाने की प्रतिबध्दता को दोहराते हुए सत्ता पक्ष द्वारा विधेयक के प्रति संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में आम सहमति बनाये जाने की कोशिश पर पहल करने की वकालत तो की गई परन्तु पूर्व विरोधी एवं स्वार्थपूर्ण परिप्रेक्ष्य को देखते हुए दूर तक महिला आरक्षण विधेयक के प्रति आम सहमति हो पाने की विश्वसनीयता नजर नहीं आई।
पूर्व में जहां तक केन्द्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की विधेयक भी इसी शीतकालीन सत्र में चर्चित रहे तथा राज्यसभा में भी बहुमत से पारित हो गये। इस तरह के विधेयक के पारित होने से सांसदों का स्वहित साफ-साफ नजर आया। इस तरह के अनेक विधेयक संसद के हर सत्र में पारित किये जाते रहे हैं जहां सांसदों का स्वहित सीधे तौर पर जुडा हुआ हो। जबकि महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने से भविष्य में उनके सांसद रहने/न रहने पर सवालिया निशान लगता साफ-साफ दिखाई देता रहा है। यह निश्चित है कि वर्तमान हालात में महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने से अनेक सांसदों का संसदीय क्षेत्र महिलाओं के लिए आरक्षित हो सकता है। जिसे वर्तमान सांसदों को किसी भी कीमत पर स्वीकार न तो आज है, न ही कल होगा। जहां तक पूर्व में संसद सदस्यों की संख्या बढ़ाकर इस विधेयक पर आम सहमति बनाये जाने की एक बार कोशिश तो अवश्य की गई परन्तु इस दिशा में भी इस सकारात्मक पहल अभी तक नजर नहीं आ रही है। 'आ बैल मुझे मार' वाली स्थिति कोई भी पुरूष सांसद बनाने के पक्ष में नहीं है। वैसे तो सांसदों की वर्तमान संख्या में वृध्दि किये जाने का पारित होना भी उतना आसान तो नहीं दिखता फिर भी यदि इस संख्या में ऐन-केन-प्रकारेण आम सहमति बनाकर भविष्य में पारित कर लिया जाता है तो भी महिला आरक्षण विधेयक पारित हो जाने के बाद संसदीय क्षेत्र हाथ से निकल जाने का खतरा पुरूष सांसदों के मन में अवश्य समाया हुआ है। जिस कारण सांसदों की संख्या बढ़ाकर महिला आरक्षण विधेयक लाने की स्थिति पर आम सहमति बन पाना कठिन सा लगता है। थोड़ी देर के लिये यह मान लिया जाय कि इस तरह के हालात भी बन जाय कि वर्तमान सांसदों के संसदीय क्षेत्र महिला आरक्षण विधेयक पारित होने से प्रभावित नहीं होंगे तो भी पुरूष सांसदों के मन में महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के उपरान्त उनकी बढ़ती पृष्ठभूमि से कहीं न कहीं एकाधिकार समाप्त होने का भय मन में समाया हुआ है। जिसे किसी भी कीमत पर वे इस खतरे को भी अपने पास फटकने नहीं देना चाहते।
जबकि महिला आरक्षण की स्थिति पंचायती राज प्रणाली में शुरू से ही लागू है। इस आरक्षण के वर्तमान हालात में महिलाओं की भागीदारी नजर तो आ रही है परन्तु अभी भी इस तरह की भागीदारी पर पुरूष वर्ग का ही वर्चस्व प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से ऐन-केन-प्रकारेण प्रभावी होता दिखाई दे रहा है। महिला पंच, सरपंच, प्रधान, प्रमुख की भूमिका में मुख्य रूप से कहीं उसका जेठ तो कहीं पति तो कहीं उसका ससुर भूमिका में नजर आता है। जिसे प्रशासनिक तथा सामाजिक तौर पर पूर्णरूपेण समर्थन भी प्राप्त है जो कि एक अलोकतांत्रिक स्वरूप को साफ-साफ उजागर कर रहा है। इस तरह के हालात में अप्रत्यक्ष रूप से पुरूष वर्ग का प्रतिनिधित्व प्रभावित तो अवश्य है। इसके बावजूद भी महिलाओं के जागरूक होने या विरोध होने का खतरा अंदर तक अवश्य समाया हुआ है। इसी तरह के हालात से ग्रसित वर्तमान सांसद जिसमें पुरूष वर्ग का प्रतिनिधित्व सर्वाधिक है, संसद एंव विधानसभा के लिये महिला आरक्षण विधेयक लाने के पक्ष में किसी भी भीतरी मन से तैयार नहीं है। जिसके कारण आज तक संसद में यह महत्वपूर्ण विधेयक लाया नहीं जा सका। निकट भविष्य में इस विधेयक के पक्ष में सांसद महिला प्रतिनिधियों की बढती प्रतिबध्दता के हालात बदलने से भले ही इस दिशा में सार्थक पृष्ठभूमि बन सके, परन्तु वर्तमान हालात इस तरह के विधेयक को जहां पुरूष वर्ग का अस्तित्व प्रभावित हो रहा हो, संसद में लाये जाने के बावजूद भी पारित कराने के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे है। बार-बार संसद में इस विधेयक को लाये जाने की बात अब मात्र छलावा बनकर रह गई है।
पूर्व में महिला आरक्षण विधेयक को लेकर शीतकालीन सत्र की समाप्ति पर पहली बार संसद में हंगामा हुआ था। सत्तारूढ कांग्रेस सदस्यों सहित सभी दलों की महिला सांसदों ने इस विधेयक के प्रति उभरते दोहरेपन रवैये को लेकर आक्रोश प्रकट करते हुए राज्यसभा में अपना विरोध भी जताया। इस तरह के बदले हालात आगामी संसदीय सत्रों में महिला आरक्षण विधेयक के पक्ष में सकारात्मक माहौल खड़ा कर पायेंगे। जहां स्वार्थ परिपूर्ण पुरूष लॉबी सांसदों की लम्बी कतार खड़ी हो, ऐसा कुछ कह पाना फिलहाल संभव नहीं दिखता। इस विधेयक के पारित होने से अप्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से प्राय: सभी पुरूष सांसद मन ही मन भयभीत हैं। जिनकी संख्या संसद में सर्वाधिक है। इस स्वार्थपूर्ण परिवेश के तहत महिला आरक्षण विधेयक पर आम सहमति न तो आज बनती दिखाई दे रही है, न कल बनने की संभावनाएं दिखाई दे रही है। इस तरह के हालात के बीच महिला आरक्षण विधेयक का प्रासंगिक परिवेश सकारात्मक हो पाना कतई संभव नहीं दिखाई देता। बजट सत्र के अंतिम दौर में राज्यसभा पटल पर पुन: लाये गये इस विधेयक के विरोध में ऐन-केन-प्रकारेण राजनीतिक दलों की स्वार्थप्रेरित गतिविधियां तेज हो चली हैं। यूपीए सरकार के प्रमुख सहयोगी राजद ने वर्तमान हालात में महिला आरक्षण विधेयक को लागू किये जाने के विरोध में सरकार से समर्थन वापिस लेने की धमकी दे डाली है। महिला आरक्षण विधेयक के लागू होने की प्रासंगिकता पर अनेक सवालिया निशान दिखाई देने लगे हैं। जो इसे भविष्य में भी लागू होने के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
-स्वतंत्र पत्रकार, डी-9, IIIए, खेतड़ीनगर-333504 (राज.)

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