Tuesday, January 30, 2018

भूल गइल त्योहार

भूल गइल त्योहार
छूटल गांव ,भूल गइल त्योहार
ढ़ूंढ़त रहनी गांव जइसन प्यार,
छूटल गांव ,भूल गइल त्योहार।1।
चिउरा,दही,तिलवा,भुजा छूटल ,
छूट गइल सब हीत न्योतोहार ।
शहर में जहवां हम रहत बानी ,
ओहिजा बा सभी के मनमानी ।
तरस गइनी पावे खातिर प्यार ,
छूटल गांव ,भूल गइल त्योहार। 2 ।
सब शहर के बा एके कहानी ,
जहां शुद्ध नइखे हवा व पानी ।
हर दिन होते रहेला तकरार ,
छूटल गांव ,भूल गइल त्योहार।3 ।
अगल बगल के ना जाने कोई ,
मतलब के हीं वहां दोस्त होई ।
पड़ोस चिन्हें से करे इन्कार ,
छूटल गांव ,भूल गइल त्योहार। 4 ।
- भरत मिश्र प्राची, पत्रकार , जयपुर

Tuesday, January 23, 2018

सन्देश

सन्देश
जब से गइल बाड़ तू विदेश बाबू ,
तब से भूल गइल अपन देश बाबू
तोहरा के यादि करे गांव के प्याऊ ,
तोहरा यादि में बिल्ली करे म्यांऊ
सब भूलि गइल बाड़ संदेश बाबू ,
जब से गइल बाड़ तू विदेश बाबू 1
गांवे  के मिट्टी आबाद करेला ,
बाहर के पइसा बर्बाद करेला
सब जानि के बाड़ मदहोश बाबू ,
जब से गइल बाड़ तू विदेश बाबू 2
पढ़ला -लिखला के मतलब भुला गइलs ,
चकमक के  दुनियां में सब लुटा गइलs
खो गइल बाड़ सब अपन होश बाबू ,
जब से गइल बाड़ तू विदेश बाबू 3  
समय रहते चेतs सबे ठीक ठाक ,
जहां भी रहब तूरही ऊंची नाक
इहे  सदा रहल  हमर सन्देश बाबू

जब से गइल बाड़ तू विदेश बाबू 4  

Saturday, January 13, 2018

सौगात !

       सौगात !
चारों ओर छाइल गहन घनेरिया ,
प्रदूषण सुरज के लीलले जात बा । 
अइसन फइलल सभी ओर अनहरिया,
आगे कुछ भी तनिको ना दिखात बा । 
पास-पास बनल जवन ऊंच अटरिया,
भोरे के धूप दूर भइल जात बा । 
धुंआ से भरि गइल अइसन नगरिया
ओ में सांस लिहल मुश्किल बुझात बा। 
अतिक्रमण से सकत भइले डगरिया ,
सब शहर के बिगड़ रहल हालात बा ।  
प्रदूषण के फइलल अइसन चदरिया ,
बीमारी के मिल रहल सौगात बा । 
         - भरत मिश्र प्राची , जयपुर 

Monday, January 8, 2018

bhojpuri rachna नीमन पड़ौसी बन न पवलसि !

नीमन  पड़ौसी बन पवलसि !
पाक आजु तक नीमन पड़ौसी बन पवलसि ,
जब से भइल अलग,तब से दुश्मनी निभवलसि।
हम  कई बार बढ़वनी  दोस्ती खातिर  हाथ ,
पर हर बार   धोखा के ही हाथ बढ़वलसि
मिलन खातिर चलववनी सदभावना गाड़ी ,
ओही में आतंकवादी बम भेजववलसि
शांति के समर्थक हमर देश सदा से रहल ,
युद्ध खातिर हमरा के हमेशा उकसवलसि
दुखे -सुखे पहिले पड़ोसी  आवेला काम,
नीमन बात आज तक ना समझ पवलसि।
पड़ौसी धरम सही मायने में का होला ,
गलत संगति में पड़ि के आज तक समझलसि।
अइसन से सावधानी बरते के चाहीं ,
                         जे आजु तक नीमन पड़ौसी बन ना पवलसि

पाक अच्छा पड़ौसी बन न पाया !

 पाक अच्छा पड़ौसी बन पाया !
पाक आज तक अच्छा पड़ौसी बन पाया ,
जब से अलग हुआ,तब से दुश्मनी निभाया।
हर पल धोखा दिया आजतक उसने हमको ,
जब भी हमने  सह मैत्री का हाथ बढ़ाया   
दुःख -सुख में पहले पड़ौसी काम आता हैं ,
इस तथ्य को आजतक नहीं समझ वह पाया। 
मिलन हेतु जो खोल दिए बंद द्वार हमने ,
आतंकवादियों की हीं  घुसपैठ कराया  
तड़प रहे जन-जन दोनों ओर सह मिलन को ,
कठोर ह्रदय पाक का अबतक पिघल पाया  
सीमा पर बेवजह तनाव बना रहता हैं ,
निर्दोष लहू सदा पाक ने बहुत बहाया। 
पहले तो अंग्रेज लड़ाये हम दोनों को ,
आज भी हम लड़ रहे,ऐसा पाक बनाया।
उसके मन में जहर आजतक जो घोला है ,
बार-बार कोशिश की पर नहीं निकल पाया।
भारत-पाक मिल सके ,नहीं चाहता कोई ,
इसलिए समय -समय पर पाक को भड़काया !

        - भरत मिश्र प्राची , जयपुर