नीमन पड़ौसी बन न पवलसि !
पाक आजु तक नीमन पड़ौसी बन न पवलसि ,
जब से भइल अलग,तब से दुश्मनी निभवलसि।
हम कई बार बढ़वनी दोस्ती खातिर हाथ ,
पर हर बार उ धोखा के ही हाथ बढ़वलसि ।
मिलन खातिर चलववनी सदभावना गाड़ी ,
ओही में आतंकवादी बम भेजववलसि ।
शांति के समर्थक हमर देश सदा से रहल ,
युद्ध खातिर हमरा के हमेशा उकसवलसि ।
दुखे -सुखे पहिले पड़ोसी आवेला काम,
ई नीमन बात आज तक उ ना समझ पवलसि।
पड़ौसी धरम सही मायने में का होला ,
गलत संगति में पड़ि के आज तक न समझलसि।
अइसन से सावधानी बरते के त चाहीं ,
जे आजु तक नीमन पड़ौसी बन ना पवलसि
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