Monday, April 19, 2010

भरत मिश्र प्राची का काव्य संसार

डॉ भरत मिश्र प्राची की अब तक प्रकाशित दो काव्य पुस्तकें जीवन ज्योति एवं सूरज को उगने दो में संकलित कुछ रचनाएँ एवं कुछ अप्रकाशित काव्य रचनाएँ यहाँ पर दी जा रही हैं
कृपया अपनी महत्ती राय से अवश्य अवगत कराएँ ।
इसके लिए मेरे दूरभाष ०९४१४५४१३२६ या इ मेल पर सूचित
आपका
भरत मिश्र प्राची

प्रथम भाग

(१)

भोर की तलाश

गाँव की सरहदी पर सूना आकाश ,

खड़ा नहीं कोई भी पनघट के पास।

मौसम बदलने की आश लिए मन में ,

सुन्दर सी बगिया भी खड़ी हें उदास ।

शहर की चकमक में उलझे हुए पांव ,

घुटन भरी जिन्दगीं ,गिन रही साँस ।

नँगे बदन हुए नाच रहा आदमी ,

सभ्यता ,संस्कृति का हो रहा विनाश।

शुद्ध जल वायु को छोड़ दिया गाँव में ,

शहर की गंदगी में कर रहा निवास ।

बाहर से हँसता हैं , अंदर से रोता हैं ,

पहन लिया तन पर आधुनिक लिवास ।

प्राची की किरने जिसको नसीब नहीं ,

अँधेरे में हैं उसे भोर की तलाश ।

(२)

सौदागरों के बीच वतन

कोई आता हैं नहीं उजड़े चमन ,

उगते सूरज को सभी करते नमन ।

शक्ति के आगे झुकाते शीश अपने ,

खिंच लेते स्वयं ही बहते पवन ।

स्वार्थ के घेरे सभी ओर बढ़ चले ,

फेर लेते परचित भी अपने नयन ।

देखिये हर रोज बदलते चेहरे ,

जब यहाँ चलते रहते हैं सदन।

फट गये बस्तर आज उलझकर ,

घूम रहे सडक पर नँगे बदन ।

बेशर्मी की हद तो इनकी देखिये ,

हंस रहे हैं बेचकर अपने वतन ।

भूलकर के वसूल बढ़ा रहे हैं हाथ ,

सत्ता की दौड़ में सब हो रहे मगन।

चल रहा बेमेल संगम का यहाँ दौड़ ,

तख्त ताज के लिए सब हो रहे दफन।

कांप गया इमान देखकर के हालात ,

भर रहा गर्द से आज सारा गगन ।

कल उदय प्राची में होगा या नहीं ,

सौदागरों के बीच फँस गया वतन ।

(३)

घोटाला

सफेदपोश वालों का ही बोलबाला हैं ,

तन गोरा दीखता पर मन जिसका कला है।

बच नहीं पाया कोई विभाग यहाँ इनसे ,

जहाँ हाथ डालो , वहीं नया घोटाला हैं।

बदल गई परिभाषाएं अपराध की यहाँ ,

बगल में बन्दूक , हाथ कंठी माला है ।

सौदागरों के हाथ बिक रहा है यह देश ,

लुटने वाला ही अब सबका रखवाला है।

समझौता की नीतियों पर टिके है पांव ,

गिरने से नही अब कोई बचाने वाला हैं।

घूम रहे निडर हो अंगरक्षकों के साथ ,

देश में हर रोज हो रहा कांड हवाला हैं ।

संसद का हर गलियारा सशंकित है आज ,

देश पर कोई न कोई संकट आने वाला है।

कलम के सिपाही चिंतित है यह जानकर ,

हर आवाज पर अब लगाम लगने वाला है।

प्राची के साथ चिंतित है हर दिशाएं आज ,

प्रगति के नाम आज देश हो रहा दिवाला है ।

(४ )

नव वर्ष का अभिनन्दन

उजड़ रहा है हर वर्ष हमारा यह नंदन ,

देखकर हालात , मन करता है क्रंदन ।

कल्पित तन, कुंठित मन,घुटी सांसे ,

करें कैसे नववर्ष का हम अभिनन्दन।

फंसे हुए है पांव जिनके दलदल में ,

कर रहे वे ही हर जगह गठबंधन ।

फैला फरेबियों का जाल यहाँ ऐसा,

जा रहा विदेश सारा का सारा कंचन ।

हल हुई नहीं समस्या रोजी रोटी की ,

पढाई ,बीमारी में बिक रहा है कंगन ।

लुट रहे देश को यहाँ जो सरे आम ,

हो रहा हर जगह उनका अभिनन्दन।

भूलते जा रहे हर वर्ष उनको सभी ,

जिसने बचाया जान देकर यह वतन।

प्राची के मार्ग सीना ताने आज भी ,

आने को तैयार इस देश का दुश्मन ।

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(५)

घुटन

इस नगर , इस बस्ती में बसते कैसे लोग ,

चारो तरफ है धुँआ , रहते कैसे लोग।

अगल कौन है , बगल कौन न जानता कोई ,

इस अपरचित हालात को सहते कैसे लोग ।

जो भी आया पास में , अपनों सा ही लगा ,

अपने से ही ठग गये , कहते कैसे लोग ।

पग में पग फंसाकर , खेल जो खेलते रहे ,

उलझ कर फिसल गये , हँसते कैसे लोग ।

आग तेल लेकर चले दूसरों का घर जलाने ,

खुद के जल गये हाथ , अब बचते कैसे लोग।

क़त्ल जो होता रहा, सब आँख से देखते रहे,

बेजुबान हो गये , अब लड़ते कैसे लोग ।

अतिक्रमण के दौर में , सडक तो लीलते रहे ,

भटक गये डगर से ,अब चलते कैसे लोग ।

आधुनिक लिवास से पर्यावरण भूल गये ,

इस तरह के घुटन को, सहते कैसे लोग।

आस पास बना ली है , अब ऊँचे ऊँचे महल ,

प्राची के सूर्योदय को , देखते कैसे लोग ।

(६)

उगल रहे सब जहर

कट रहे वृक्ष , उजड़ रहे नगर ,

बस रहे हर रोज ,नये नये शहर।

मोटर , कल , कारखाने मिलकर,

उगल रहे हैं , सब यहाँ जहर।

अतिक्रमण के निरंकुश कदम,

अब रौंद रहे हैं डगर- डगर।

आधुनिक लिवास में लिपटा तन ,

उजाड़ रहा है अब बसा घर ।

बेरोजगारी , बीमारी , महंगाई ,

अब बढ़ने लगी यहाँ इस कदर।

परेशां हो चला हर इन्शान ,

छीन गयी नींद आठो पहर।

अहिंसा का अलख जगा रहे,

रक्त से सने हाथ तर - बत्तर।

इधर खाई , उधर है कुआं ,

जाएँ तो जाएँ आखिर किधर।

उदारीकरण का नशा आज,

फैल रहा है यहाँ इस कदर।

देश चौपट के कगार खड़ा,

विदेशी पग यहाँ रहे पसर।

अब लुटने लगे हैं हर रोज,

कैसे करें लोग यहाँ बसर ।

छीन रहे अधिकार अब सारे ,

फिर भी मौन हैं सबके अधर।

आगे उड़ न सके देश कभी ,

प्रगति के नाम काट रहे पर।

गुलामी के डगर दूर नहीं,

यदि यहीं हालात रहे अगर।

मौत को देते हैं निमंत्रण ,

काट कर पेड़ - पौधों के सर।

स्वार्थ के वशीभूत मानव ,

अब लीलता प्राची का सहर।

(७)

नव वर्ष का उपहार

आ रहा है नव वर्ष , जा रहा है गत वर्ष ,

इन मिलन की बिन्दुओं पर ,है नया उत्कर्ष।

मची हुई हा हा कार , दर्द भरी चीत्कार,

डिग्रियां लेकर यहाँ , हैं सैकड़ों बेकार।

बढ़ रही महंगाई , न घट रही बीमारियाँ ,

इन सभी को लेकर , आज हो रहा संघर्ष।

देश का है जो लाल , बन गया वहीं दलाल ,

भेज रहा विदेश में, सब देश का ही मॉल।

आयकर देता नहीं , है किसी से भय नहीं,

अंगरक्षकों के बीच , मना रहा है हर्ष ।

वायदों की कतार , जहाँ खोखले आधार ,

धोखा घडी से भरा , हर एक कारोबार ।

गर्दन पर तलवार , गठबंधन की सरकार ,

द्वन्द में उलझ गया , जहाँ हर निष्कर्ष ।

पनप रहा है द्वेष , बचा न अब कुछ अवशेष ,

खींचतान के बीच में , मिट रहा है यह देश,

तस्करी व् लूटमार , नववर्ष के उपहार ,

दिन रात हो रहा हैं यहाँ आपसी आघर्ष ।

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(८)

आतंकवाद

चारो ओर पनप रहा आतंकवाद ,

मिट रहा है हर रोज मानवतावाद।

सिरफिरे घूम रहे इस तरह आजकल ,

गुमसुम हो गई है आज हर फरियाद ।

सभी मुल्क में मच गई फिर से भगदड़ ,

अशांत हो चला आज सारा उन्माद ।

बारूद की ढेर पर बैठा हर मुल्क ,

गिन रहा सांसे एक एक कर याद ।

सांप छुछुंदर का खेल रहे जो खेल ,

खोखली हो रही है उनकी बुनियाद ।

फंस गए है अपनी चाल में वे खुद ही ,

चेला बन गया उनका आज उस्ताद ।

गुमराह हो रही है पीढ़ी आजकल ,

चढ़ रही बेदी पर हर रोज औलाद ।

एक नहीं अनेक आतंकी यहाँ पर ,

अपने ही मुल्क को कर रहे बर्बाद ।

दूसरा भाग

(१)

सूरज को उगने दो

सूरज उग रहा है ,

तो उसे उगने दो ,

मुझे तंग न करो,

सो लेने दो ।

सूरज का उगना ,

और ,

मेरा जगे रहना ,

अपनों को कभी भाता नहीं है ।

जब तक मैं ,

जगा रहता हूँ ,

पास कोई आता नहीं है ।

जाग - जाग कर ,

बहुत कुछ जान चूका हूँ ,

एक दुसरे को ,

पहचान चूका हूँ ।

सूरज उग रहा है ,

तो उसे उगने दो।

(२)

हम देश के राजा है

देश की जनता ने ,

बड़े शौक से ,

हमारे सर ताज रखा है ,

हम देश के राजा है ।

जो चाहेंगे ,वहीं करेंगे ,

न सुनेंगे ,न सुनने देंगे ,

बेचना है ,तो बेचेंगे ,

आप क्या कर लेंगे ?

हम देश के राजा है ।

भारत पेट्रोलियम ,हिंदुस्तान पेट्रोलियम ,

फिलहाल नहीं बेच पाए ,

तो क्या हुआ ?

आदालत में जायेंगे ,

संसद को बतलायेंगे ,

अपने पक्ष में ,

हवा बनायेंगे ,

यदि फिर भी,

बात नहीं बन पाई ,

तो इंडियन आयल बेच डालेंगे ।

अपने सर ,

कोई बोझ नहीं रखेंगे ,

आज तेल तो कल रेल ,

परसों ,

पूरा देश बेच डालेंगे।

पिछली सरकार ने भी तो ,

सोना गिरवी रखा था ,

हम देश को गिरवी रख देंगे ,

आप क्या कर लेंगे ?

हम देश के राजा है ।

(३)

निर्दोष लहू न बहने दो !

देश के भीतर ,

लाखों मंदिर , मस्जिद हैं ,

जो टूट रहे हैं ,

विखर रहे हैं ,

उजड़ रहे हैं ,

खंडहर होते जा रहे हैं ,

पर इसकी चिंता किसी को नहीं ।

सभी की नजरें ,

अयोध्या पर टिकी है,

काशी , मथुरा पर टिकी हैं ,

जहाँ देश की धार्मिक भावनाएं ,

जागृत होती है ,

जहाँ से भुनाने की प्रक्रिया ,

शुरू होती है ।

आज मंदिर , मस्जिद के बीच ,

समां गई वोट की राजनीति ।

न मंदिर बनाना हैं ,

न मस्जिद गिराना हैं ,

धर्म के नाम पर ,

देश की जनता को उलझाना हैं ।

ताकि ,

देश में जब जब चुनाव हो,

मंदिर - मस्जिद के नाम ,

यहाँ पर लोगों को ,

आपस में लड़ाया जा सके ,

मगरमच्छी आसूं बहाकर ,

आपने पक्ष में ,

जनमत जुटाया जा सके।

यहाँ,

अब हर राजनैतिक दलों की ,

वोट की खातिर ,

यह सामान्य सी प्रक्रिया बन चुकी हैं,

पहले लड़ाना ,

फिर मनाना ,

तब भुनाना ।

जब- जब भी यहाँ चुनाव आता हैं ,

निर्दोष लहू बहा करता हैं ,

पर कोई नहीं कहता ,

वोट की राजनीति से ,

धर्म को न जोड़ों ,

लोगों को न फोड़ों ,

अपने स्वार्थ के लिए ,

कुर्सी खातिर ,

देश को न तोड़ों ,

मानव को ,

मानव ही रहने दो ,

निर्दोष लहू न बहाने दो ।

(४)

लूट का नजारा

एक बार इस देश में ,

आया एक विदेशी गौरी ,

जिसने इस देश को ,

जी भर कर लूटा ।

और हम ,

लूट का यह नजारा ,

चुप चाप देखते रहे ,

आपस में लड़ते रहे ,

देश गुलाम हो गया ।

इतिहास ने करवटें बदली ,

और हम आजाद हो गये ।

परन्तु लुटेरे ,

लगातार इस देश को लुटते रहे ,

और हम ,

आज तक पहचान नहीं पाए,

कौन देशी हैं , कौन विदेशी ।

पहले विदेशियों ने इसे ,

जी भर कर लूटा ,

और आज अपने ही लूट रहे है ।

जब बांध खेत को खाए ,

तो कौन बचाए ?

जब अपना ही चिर हरण करें ,

तो किस पर विश्वास करें ?

देशी हो या विदेशी ,

क्या फर्क पड़ता है ,

लुटेरा तो लुटेरा ही होता है ।

देश पहले भी लुटता रहा ,

आज भी लूट रहा है ,

और हम सभी ,

लूट का नजारा देख रहे है ।

( ५ )

बुढ़ापा

वाह रे बुढ़ापा !

तेरी अजीब सी माया

बदल गई काया

जिसे देखकर

पास नहीं कोई आया ।

जब तक रही साँस

बुझी नही प्यास

जब निकल जाएगी साँस

तब उगाई जाएगी

टूटे विश्वास पर हरी हरी घास ।

(६)

ठिठुरती काया

सड़क की परिधि में

खुले आकाश के नीचे

श्वेत पट के बीच

अपने आप को छिपाए हुए

प्रतिद्वंदी की भावना

मन में दबाए हुए

न जाने कब से

पड़ी हुई थी

एक अभिशप्त

ठिठुरती काया ।

वह अवलोकन कर रही थी

बार -बार

उन सजल नेत्रों से

जो न जाने कब से

अपने आप से

समझौता कर लिए थे ।

उदिग्न भाव

उठ रहे थे बार - बार

और शांत हो जाते

स्वयं ही

उफनते दूध की तरह ।

शीतलहरी

थपेड़े मार रही थी

प्रतिद्वंदी बनकर

या सुला रही थी

दोस्त बनकर

कुछ कहा नहीं जा सकता ।

क्योंकि

अभिव्यक्ति लुप्त हो चुकी थी

सिर्फ बची हुई थी

झुरिया पड़ी आकृति

जो न जाने कब से

अपने आप से

अन्दर ही अन्दर

भावनाओं से दबकर

समझौता कर चुकी थी ।

(७)

अजनबी

वह

चौराहे के बीचो बीच

एक ऐसी जगह

आकर रुक गया

जहाँ से हर एक को

अच्छी तरह देख सके ।

उसके अधर खुले हुए थे

शब्दों के झुण्ड

एक प एक

तालुओं से लिपटे हुए थे

फिर भी न जाने क्यों वह

किसी से कुछ कह नहीं रहा था।

बिखरे हुए बाल से

हवा टक्कर ले रही थी

और वह शांत खड़ा था

जिसके आगे

कुछ सूखे पुष्प बिखरे थे

जिनकी पंखुरियों पर

अलगाव के लक्षण

साफ साफ दिखाई दे रहे थे

नफरत की छाया

आस -पास मंडरा रही थी

फिर भी वह

मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था

पर उसकी मुस्कराहट

न जाने कहाँ गायब हो गयी थी

उसके हाथ

न जाने कब से

उससे अलग हो चुके थे

नेत्र होते हुए भी वह

नेत्रहीन बना हुआ था

फिर भी

मन में आश लिए खड़ा था

शायद कोइ पहचान ले ।

परिचितों का झुण्ड

एक - एक कर

सामने से गुजरता गया

पर किसी ने भी

मुड़कर उसकी तरफ

एक बार भी देखा नहीं

अब वह थक चूका था

मूक दृष्टी से संबोधित करते हुए

अपने आप को

उन लोगों से

जो उसे जानकर भी

उसे अजनबी बना गये ।

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Friday, April 16, 2010

जीवन परिचय बृत

नाम :- भरत मिश्र प्राची
पिता :- श्री बृज किशोर मिश्र
जन्म :- १२ जुलाई १९५३
जन्म स्थान :- बड़का गाँव , बक्सर , बिहार
निवास :- सन १९७५ से निरंतर राजस्थान में
संपर्क सूत्र :- डी- ९ सेक्टर - ३ ऐ , खेतड़ी नगर -३३३५०४ , झुंझुनूं , राजस्थान
मोब :- ०९४१४५४१३२६, ०९४६०५४०७२७ दूरभाष :- ०१५९३-२२०३२६
संपर्क जयपुर :- ऐ -४, गायत्री नगर, सोडाला
दूरभाष :- ०१४१- ५१३१५५२ मोब- ९३१४९०८२२१
शिक्षा / उपाधि :- स्नातक (कला ) , साहित्य रत्न , विद्या वाचस्पति (मानद)
रूचि :- सृजन , पत्रकारिता , कवित्ता पाठ, लेखन , संचालन, सामाजिक कार्य
सृजन
प्रकाशित आलेख :- दैनिक हिंदुस्तान ,राजस्थान पत्रिका , भास्कर , जागरण ,सन्मार्ग ,स्वतंत्र वार्ता , रांची एक्सप्रेस , हरि भूमि ,जलते दीप, डेली न्यूज़ , नव जयोति ,बिजनोर टाइम्स,चमका आइना , चर्चित दुनिया , उतर उज्जाला, आदि के सम्पादकीय पृष्ट .
प्रकाशित कहानिया :- राजस्थान पत्रिका के रविवार , परिवार अंक सहित देश की चर्चित अन्य पत्र -पत्रिका में
प्रकाशित कृत्तियाँ
उपन्यास :- अधूरी प्यास , मोह भंग , भोर की तलाश
कविता संग्रह :- जीवन ज्योति , सूरज को उगने दो
निबंध संग्रह :- सत्ता संगर्ष , शून्य काल , गुलामी की ओर बढ़ते कदम
डॉ भरत मिश्र प्राची - एक सर्जनात्मक व्यकित्तव :-संपादक - डॉ यदुवीर सिंह खिरवार
प्रकाशनाधीन कृत्तियाँ
संस्कार ( कहानी संग्रह ), लाभ तंत्र ( निबंध संग्रह )
डॉ प्राची के निबंधो में समकालीन बोध :- लेखक - डॉ दीना नाथ सिंह
संपादन
भारतीय जनभाषा की विशिष्ट त्रैमासिक पत्रिका कंचन लता का १९८६ से संपादक पद पर अवैतनिक कार्य
दायित्व
संयोजक - हिंदी साहित्य परिषद् , खेतडी नगर , महा मंत्री - भोजपुरी सांस्कृतिक समिति ,
सम्मान
२० अगस्त १९९५ , पटना , बिहार में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य सम्मलेन में अंग माधुरी रजत
२ अक्टू १९९५ , युवा साहित्य मंडल , गाजियाबाद (ऊ प ) द्वारा सृजन सम्मान
२६ अक्टू १९९७ , हिंदी साहित्य सम्मलेन , गाजियाबाद में पद्म श्री चिरंजीत द्वारा अति विशिष्ट सम्मान
सन १९९८ में बाबा आंबेडकर संस्था बनवास में तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा शेखावाटी गौरव सम्मान
१४ सितम्बर १९९९ में महावीर सेवा संस्था , प्रताप द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान
३१ अक्तू १९९९ में अखिल भारतीय साहित्य सम्मलेन , गाजियाबाद में आचार्य महावीर प्रसाद दिव्वेदी
५ जनवरी २००० को गुजरात हिंदी विद्यापीठ के आयोजित समारोह में राज्यपाल द्वारा शांति साधना सम्मान
वर्ष २००० में अमेरिकन ब्योग्रफिकल विभाग द्वारा men ऑफ दी इयर की उपाधि
८ मार्च २००० को अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन , मैनपुरी द्वारा सम्पादक रत्न
२२ अप्रैल २००० को गाजियाबाद में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मलेन में राजभाषा मनीषी
२१मई 2000 को साहित्यिक ,सांस्कृतिक ,कला संगम अकादमी (ऊ प्रदेश ) द्वारा आयोजित भाषाई एकता सम्मलेन में आचार्य देवी दत्त शुक्ल सम्मान
२८ मई २००० को विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ ,भागलपुर के ७ वे दीक्षांत समारोह में विद्यावाचस्पति की उपाधि
१४सितम्बर 2000 को अखिल भारतीय साहित्यकार मंच , रायबरेली द्वारा रसूल अहमद अबोध सम्मान
१५ अक्तू २००० को अंकिता प्रकाशन , आसनसोल द्वारा गिरिजा कुमार माथुर सम्मान
२२ अक्टू २००० को गाजियाबाद में आयोजित हिंदी सम्मलेन में हिंदी सेवी प्रमुख सम्मान
३०जन २००१ को जिला पत्रकार समिति एता द्वारा आयोजित अखिल पत्रकार सम्मलेन में पत्रकार मनीषी
१२मार्च २००१ को शिर्डी में आयोजित नागरी लिपि सम्मेलन में पत्रवाचन के लिए नागरी लिपि सम्मान
२५ मार्च २००१ को सीकर में आयोजित पत्रकार सम्मलेन में क्विज में प्रथम पुरस्कार सम्मान
२० अप्रैल २००१ को अखिल भारतीय राष्ट्र भाषा विकास संगठन के समारोह में राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान
१०जून २००१ को मैनपुरी में आयोजित साहित्यकार /पत्रकार सम्मलेन में पत्रकार शिरोमणि सम्मान
४अगस्त २००१ को जेमिनी अकादमी पानीपत द्वारा पद्म श्री लक्ष्मी नारायण दुबे सम्मान
१२ अक्टू २००१ को प्रज्ञा सृजनात्मक मंच द्वारा अभिनन्दन
१४ अक्टू २००१ को कृष्ण नगर नेपाल में सृजन हेतु अभिनन्दन
२५अक्तू २००१ को मानव भारतीय सांस्कृतिक समिति हिसार द्वारा साहित्य सम्मान
२८अक्तू २००१ आल इंडिया न्यूज़ पेपर एशोशिएसन द्वारा पत्रकारिता के लिए सम्मान
३मार्च २००२ को इन्दोर में आयोजित सम्मेलन में पत्रवाचन हेतु सम्मान
१८ मार्च गोंडा , झारखण्ड में आयोजित साहित्य सम्मलेन में अखिल भारतीय अंगीक कला मंच द्वारा सम्पादक शिरोमणि सम्मान
१६ फरवरी २००३ को सृजन सम्मान, छ ग , द्वारा आयोजित समारोह में महामहिम राज्य पाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा पद्म श्री मुकुट धर पाण्डेय सम्मान
९ नवंबर २००३ को सुल्तानपुर में सरिता लोक भारती संसथानद्वारा साहित्य गौरव सम्मान
२८ जन २००४ को खगडिया ,भिहर में हिंदी भाषा साहित्य परिषद द्वारा उपन्यास भोर की तलाश के लिए राम बलि परवाना सम्मान
३१अक्त०० २००४ को शिमला में केन्द्रीय श्रम रोजगार मंत्री द्वारा पत्रकार भूषण सम्मान
२७ नवम्बर २००५ को जबलपुर ( म प्रदेश ) की साहित्यिक संस्था कादम्बरी द्वारा निबंध संग्रह सत्ता संगर्ष हेतु
ब्रम्ह्कुमार प्रफुल सम्मान
७मइ २००६ को अखिल भारतीय संगम उदयपुर द्वारा कलम कलाधर सम्मान
२२अगस्त २००७ को ऋचा रचनाकार परिषद द्वारा भारत गौरव सम्मान
१५जन२००८ को पुष्प गंध प्रकाशन द्वारा संपादक श्री सम्मान
२०जन२००८ को हिंदी भाषा सम्मलेन पटियाला पंजाब द्वारा आचार्य हजारी प्रसाद दिव्वेदी सम्मान
१८ अक्तू२००८ को श्री बाबा गरीब नाथ विद्या प्रचारणी पीठ हरियाणा द्वारा परम हंस श्री गोपालनाथ जी स्मृति सम्मान
२०दिसम्बर २००८ को जेमिनी अकादमी हरियाणा द्वारा अखिल भारतीय सम्मान के तहत राजस्थान रत्न सम्मान
२९मार्च२००९ को मुक्त मनीषा साहित्यिक सांस्कृतिक समिति डबरा (म प्रदेश ) द्वारा संत कन्हर सम्मान
२४ मई २००९ को हिंदी भाषा सम्मलेन पंजाब द्वारा काव्य कलश सम्मान