Thursday, March 19, 2009

राम, रोटी और आतंकवाद

देश में लोकसभा चुनाव का समय जैसे -जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे राजनैतिक दलों की यहां सरगर्मियां तेज होती जा रही है। सभी राजनैतिक दल अपने अपने तरीके से लोकसभा चुनाव में अपना वर्चस्व कायम करने में जुट चले हैं। एक दूसरे पर प्रहार करने की प्रक्रिया सक्रिय हो चली है। इस कडी में आरोप-प्रत्यारोप के जारी क्रम को आसानी से देखा जा सकता है। ऐसे परिवेश में एक दूसरे से गठबंधन किये जाने के भी स्वरुप को देखा जा सकता है। हाल ही में देश के दो सबसे बडे राजनैतिक दल कांग्रेस एवं भाजपा के हुए कार्यकर्ता सम्मेलन को भी इस दिशा में देखा जा सकता है। जहां भाजपा राम व सेतू प्रकरण को चुनाव का मुख्य मुद््दा बना रही है तो कांग्रेस आतंकवाद को आगे कर देश की जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के प्रयास में सक्रिय नजर आ रही है। देश के वामदल महंगाई, भविष्यनिधि, रोजगार, भ्रष्टाचार आदि के मुद््दे पर वर्तमान संप्रग सरकार को घेरने की तैयारी कर अपना पक्ष मजबूत बनाने का भरपूर प्रयास कर रहे है। इस दिशा में 17 फरवरी को दिल्ली में वामदलों से जुडे श्रमिक संगठनों के होने वाले आंदोलनीय पृष्ठभूमि को देखा जा सकता है। 12 फरवरी से प्रारम्भ संसदसत्र के दौरान विपक्षी दलों द्वारा सरकार को घेरने कीे भरपूर कोशिश एवं सरकार द्वारा अपने पक्ष को मजबूत करने के साथ-साथ आमजनमानस एवं मध्यम वर्ग को संतुष्ट करने की दिशा में जारी घोषणावों के बीच लोकसभा चुनाव की गूंज देखी जा सकती है।
आज पूरे विश्व में मंदी का दौर चल रहा है । भारत देश भी इस तरह के परिवेश से अछूता नहीं है भले ही यहां की केन्द्र सरकार इसके बचाव में जो भी वकतब्य जारी करे। आज मंहगाई इस देश में हर जगह पांव पसार चुकी है। कम्पनियों में छटनी का दौर जारी है। कई कम्पनियां मंदी के चपेट में आ चुकी है। आज दिन पर दिन रोजी रोटी की समस्या जटिल होती जा रही है। लाखों हाथों से काम छीनने के आसार बनते जा रहे है। इस तरह के परिवेश में राम से कहीं ज्यादा रोटी का प्रसंग सबसे महत्वपूर्ण दिखाई दे रहा है । कहा भी गया है कि भूखे भजन न होउ गोपाला, ले लेहू आपन कंठी माला । आज इस तरह के हालात में रोटी देने की बात न कर राम के नाम जनमानस को अपने पक्ष में जो जुटाना चाहता है उसकी सोच अप्रासंगिंक ही कही जा सकती है।
र् वत्तमान संसद सत्र के दौरान संप्रग सरकार द्वारा जारी रेल बजट एवं अतंरिम बजट का स्वरुप भले ही लोकलुभावना लग रहा हो परन्तु उभरी समस्याओं का हल इसमें कहीं भी नजर नहीं आ रहा है। आज के हालात में देश की जनता को जीवन रक्षार्थ रोजगार की जरुरत सबसे पहले है। पेट को रोटी चाहिए और रोटी रोजगार से ही मिल सकती है। आज जब कार्यरत लोगों के हाथ से रोजगार छीना जा रहा हो तो कैसें ये लोग वर्तमान सरकार के साथ जुड सकेगें विचार किया जा सकता है। पूर्व में तत्कालीन एन.डी.ए. सरकार की नई आर्थिक नीतियों के तहत जारी विनिवेश नीति से बेरोजगार हुई देश की जनता ने आम चुनाव में सरकार को पूर्णरुप से नाकार दिया था। जिसके प्रतिफल में यहां नई सरकार का गठन हुआ तथा एन. डी. ए. सरकार के प्रमुख घटक दल भाजपा को घर से बेघर हुई का खुलकर विरोध समर्थित समय तक करते रहे है जिससे नई आर्थिक नीतियों के पक्षधर रहे सरकार में शामिल स्वतंत्र रुप से मनचाहा निर्णय नही ले सके। इस तरह के परिवेश से भी देश की जनता भलीभांति परिचित है। आज वामदल सरकार को समर्थन नहीं दे रहे है यह पूरा देश जानता है।
मंहगाई दर गिरती तो जनता के कोपभंजन का शिकार होना पडा। देश में वामदलों के समर्थन से नई सरकार उभर कर सामने आई। वामदलों को इस तरह के परिवेश का चुनाव में पूरा लाभ मिला।
केन्द्र में गठित संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वामदल सरकार की जनविरोधी एवं मजदूर विरोधी नीतियों
जा रही पर बाजार पर इसका अपेक्षित प्रभाव अभी नजर नहीं आ रहा है। बाजार में सामानों के दाम ज्यों के त्यों दिखाई दे रहे है। भ्रष्टाचार में कहीं कमी नजर नहीं आ रही है। नई आर्थिक नीतियों के परिवेश में उभरी कम्पनियों एवं बैकों के जो हालात उभर कर सामने आ रहे है किसी से छीपे नहीं है। सत्यम, जेट, सहित अनेक कम्पनियों में आज छंटनी का क्रम जो जारी है वह कहीं थमने का नाम नहीं ले रहा है। भर्ती तो हो नही रही है, मंदी के नाम पुरे देश से निजी कम्पनियों से कार्यरत लोग निकाले जा रहे है।
सरकार मौन होकर चुपचाप सबकुछ देख रही है। इस तरह के हालात सरकार के पक्ष में कैसे जनमत जुटा पायेंगे विचारणीयमुद््दा है।
आज आतंकवाद भी गंभीर मुद््दा उभर कर सामने आ रहा है। जिसके चंगुल में पूरा देश फंसता जा रहा है।
इस बार के लोकसभा चुनाव में विशेष रुप से राम ,रोटी और आतंकवाद का ज्वलंत मुद््दा प्रमुख रुप से विराजमान रहेगा ऐसा परिलक्षित हो रहा है। देश की जनता किसे प्राथमिकता देती है यह तो चुनाव उपरान्त ही पता चल पायेगा। परन्तु हर पेट को पहले रोटी चाहिये जिसे किसी भी कीमत पर नकारा नहीं जा सकता है। जो इसकी पहचान समय रहते कर सकेगा वहीं लोकतंत्र का बादशाह होगा।

मंदी की मार, मंहगाई की तेज धार से आम जन बेकरार

नई आर्थिक नीतियों के तहत विशाल पैमाने पर विश्व पटल पर फैली अनियमितताओं एवं लापरवाही जैसी अनेक विसंगतियों के कारण आई मंदी की मार से अनेक घर बर्बादी के कगार पर पहले ही पहुंच चुके है। इस परिवेश में उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के तहत विश्व बैंक से निकाली गई अरबों-खरबों की राशि कार्य कर रहे करोड़ों लोगों को स्वेैच्छिक सेवा निवृत्ति के माध्यम से बेकार करने हेतु बांटकर, एन. जी. ओ. के बीच लुटाकर एवं अनाप सनाप मार्ग में अपव्यय कर जो संचित धन के साथ अनियमितताएं बरती गई , उसी का यह परिणाम है कि आज पूरे विश्व स्तर पर मंदी का दौर दिखाई दे रहा है।हमारा देश इस तरह के परिवेश से अछूता तो रहा नहीं, साथ ही सस्ती लोकप्रियता बटोरने हेतु कर्ज माफ कर जो संचित धन का दुरुपयोग किया है ,उसी का परिणाम आज हम सभी मंदी के रुप में भुगत रहे है।यदि विश्व बैंक से ली गई उधार राशि को स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के वजाय उद्योग विकास में लगाया गया होता तो आज इस देश का विकास के पैमाने पर नया ही नक्शा होता तथा मंदी की मार के प्रतिकूल प्रभाव से बचाव भी हो जाता।
इधर मंदी की मार से आम जनजीवन परेशान तो है ही, दिन पर दिन बढती जा रही मंहगाई की तेज धार के आगे वह बेकरार होता जा रहा है।यहां की सरकार अपने संवाद में एक तरफ तो मंदी के प्रभाव को देश के भीतर नगण्य बता रही है तो दूसरी ओर इसके बचाव में छटनी के बजाय कटौती किये जाने का मार्ग सुझा रही है। इस तरह के दोहरे मापदंड से देश के भीतर आमजन की समस्याएं घटने के बजाय बढ़ चली है। सरकार के आकडें में मंहगाई का स्वरुप भी कुछ इसी तरह के दोहरे मापदंड के बीच घिरा दिखाई दे रहा है जहां मंहगाई की दर सरकारी आकडें में पहले से काफी कम दिखाई दे तो रही है पर वास्तविकता में बाजार में जहां यहां का आम उपभोक्ता खड़ा है वहां का नजारा ठीक इसके विपरीत देखा जा सकता है। आज मंहगाई दर 13 फीसदी से घटकर 3.35 के आस - पास पहुंच तो चुकी है परन्तु बाजार में दैनिक प्रयोग के सामान पहले से कहीं ज्यादा भाव में धड़ल्ले से बिक रहे है तथा सरकार मंहगाई दर कम होने की वकालत कर रही है। इस दिशा में बाजार के भाव को देखा जा सकता है जहां चीनी, दाल, आटा, चावल, तेल, मसाला, प्याज आदि पहले से ज्यादा दाम में बिक रहे है ं। आज के बाजार भाव का उस माह के बाजार भाव से तुलनात्मक अध्यन किया जा सकता है जब मंहगाई दर सर्वाधिक रही है।
लोकसभा चुनाव नजदीक आते देख केन्द्र सरकार आम जन को लुभाने की दृष्टि से मंदी की मार से बचने की दिशा में राहत दिये जाने की अनेक घाेंषणाएं तो दिन पर दिन करती जा रही है परन्तु इसका कहीं भी सकरात्मक प्रभाव नजर नहीं दिखार्इ्र दे रहा है । आज भी यहां कार्य कर रहे अनेक लोगों को ऐनकेन प्रकारेण मंदी के नाम निकाला जा रहा है और सरकार मंदी से बचाव का मार्ग तलाश रही है। यह सरकार की आमजन के प्रति कैसी प्रतिबध्दता है विचार किया जाना चाहिए। जहां सरकार द्वारा मंदी के इस दौर में छंटनी किये जाने के वजाय कटौती किये जाने का सुझाव देना आज शोषण के नये स्वरुप को उजागर कर दिया हैे। सरकार की इस तरह की घोषणा होते ही निजी कंपनियों में प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष रुप से वेतन कटौती का सिलसिला शुरु हो गया है साथ ही अपने को सुरक्षित समझने वाले सार्वजनिक क्षेत्रों के लोग भी कहीं कहीं इस तरह के परिवेश के शिकार हो चले है। सरकार अपने बचाव में भले ही जो भी तथ्य जारी करे , इसके दोहरेपन रवैये के कारण सारे तथ्य झूठे पड़ते जा रहे है।
देश की अधिकांश जनता मध्यमवर्गीय है। जो रोजगार पर टिकी है। रोजगार नहीं मिलने या छीन जाने पर उसकी मनोदशा कैसी हो सकती है, सहज अनुमान लगाया जा सकता है। मंदी के इस दौर में मंदी के नाम हो रहे शोषण से बचाव किये जाने की अपेक्षाएं उसे सरकार से है ं। सरकार का भी दायित्व होता है कि संकट के दौरान उसकी रक्षा करे जिसके हित के निमित्त उसका स्वरुप परिलक्षित होता है। मंदी पूंजीवादी व्यवस्था से उपजी नई आर्थिक नीति की देन है जिसका शिकार यहां का हर मध्यमवर्गीय परिवार हो रहा है। मंदी एवं मंहगाई आज दोनों ही भारत जैसे विकसित देश के लिये घातक है। इस तरह के परिवेश से निजात पाने का मार्ग प्रशस्त आमजन द्वारा गठित सरकार को ही करना होगा तभी उसका स्वरुप साकार हो सकेगा।
देश में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनाव घोषणा के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो गई है। मंदी एवं मंहगाई दोनों से यहां के आमजन आज परेशान है, जिसका लोकसभा चुनाव पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। देश के सभी राजनैतिक दल इस चुनाव में सर्वाधिक सीट पाकर केन्द्र की सत्ता पर कब्जा करने की प्रक्रिया में जुट गये हैं। मंदी की मार एवं मंहगाई की तेज धार के बीच खड़ी देश की आम जनता का ही निण्र्ाय नई लोकसभा के स्वरुप को निर्धारित करेगा।