लोकतंत्र में छलियों का राज !
-भरत मिश्र प्राची
राजतंत्र में सदा से ही बल प्रभावी रहा है। जसके पास ताकत रही है वहीं शासन fकया है। हर युग का इतिहास इसका साक्षी है । पर लोकतंत्र में छल प्रभावी रहा है। जिसने ज्यादा जो भरमाया, उसने ही यहां राज चलाया। इसका प्रमाण समय - समय पर सत्ता परिवर्तन के बदलते स्वरुप में देखा जा सकता है। देश में आजादी के बाद स्थापित लोकतंत्र में सत्ता की ताकत जनता के हाथ जरूर आई पर कब्जा छलियों का ही रहा। अपने वाक बुद्धि की चतुरता से जिसने जनता को प्रभावित कर लिया , उसने सत्ता पर कब्जा जमा। इस परिवेश ने लोगों में आपसी सदभाव, प्रेम को समाप्त कर रंग भेद नीति का स्वरुप ज्यादा उजागर किया है। जिससे विकास कम विनास ज्यादा हुआ। आज उसी का परिणाम है कि देश आजादी के इतने वर्ष बाद भी सबकुछ रहते हुए आर्थिक गुलामी से जूझ रहा है। अपने ही लोगों के कारण आतंकवाद के बीच से गुजर रहा है। जहां देश की अस्मिता को सदैव चुनौति मिल रही है।
इस तरह के हालात में बदलते लोकतंत्र के स्वरुप में जो घिनौनी तस्वीर उभर कर विश्व पटल पर सामने आ रही है, शर्म से सभी का सिर झुका जा रहा है, जहां संसद एवं विधान सभा के पवित्र आंगन विचार विमर्श के बजाय आपस में फूहड़ परिवेश को उजागर करते मिलते है। जहां सड़कनुमा गाली - गलौज से लेकर हाथापाई तक नौबत देखी जा सकती है। जहां एक दूसरे पर कीचड़ उछालते देर नहीं लगती।
काला धन बटोरने में सभी मशगूल है पर अपने को सही एवं औरों को गलत ठहराने की कला में सभी निपुण है। यहीं कारण है िक छलियों का साम्राज्य िदन दुनी रात चौगुनी पसरता जा रहा है । जहां मुनाफाखोरों पर िनयंत्रण के बजाय खुली छूट दे दी जाती है िजससे महंगाइर् बढ़ती जाती है। यहीं कारण है िक पिरवतर्न सत्ता के वावयूद भी आम लोगों को राहत नहीं िमल पा रही है। िजन मुद््दों को लेकर सत्ता पिरवतर्न का दौर जारी है , वे मुद््दें आज भी जीवन्त ही नहीं , िवस्तार से अपने पग पसारते जा रहे है। देष की अवाम समस्याओं के बीच िदन पर िदन उलझती जा रही है और ये बड़े सहज ढंग से िसयासती चाल से एक दूसरे के िसर दोश का िठकरा फोड़ अपने आप को पाक सािबत करने में सफल हो जाते। यहीं कारण है िक आज देष में सत्त्ाा पिरवतर्न के वावयूद भी समस्याएं घटने के वजाय बढ़ती जा रही है।
इस तरह के हालात के बीच केन्द्र में सत्ता पिरवतर्न हुआ, साथ ही राजस्थान, हिरयाणा, जम्मू - कष्मीर, िदल्ली, में भी सत्ता पिरवतर्न हुआ पर इन जगहों पर पिरवतर्न ने कोइर् नया इितहास रचा हो ऐसा कुछ नहीं िदखाइर् देता । रोजगार , महंगाइर्, भ्रश्टाचार के मामले ज्यों के त्यों नजर आ रहे है। मल्टीनेषल कंपिनयों एवं भारतीय बाजार पर िवदेषी सामानों की भरमार के हालात आवष्य नजर आने लगे है। इस तरह के हालात देष में महंगाइर् बढ़ाने एवं युवा पीढ़ी को बेरोजगार करने में ज्यादा कारगर सािबत हो सकते है। जब तक देश का विनिवेश भारतीय अस्मिता के साथ नहीं जुड़ता तब तक विनिवेश के बढ़ते कदम देश हित में हो सकेगें कह पाना मुश्किल होगा।
जहां आज के नेतृृत्व में छलियों का राज हो, हर तरह के माफियाओं का बोलबाला हो, ऐसे हालात में कालाधन बाहर से लाना तो दूर की बात देश के भीतर ही काला धन से दूर होना कतई संभव नहीं। काला धन बटोरने एवं कालाधन को बचाने के लिये ही लोग सत्ता तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करते । इस तरह के लोगों से जो स्वयं ही दल दल में फंसे हो , हर तरह के अनैतिक कार्य से जुड़े हो , जो सत्ता हथियाने के लिये हर तरह के अनैतिक कार्य कर सकते हो , नैतिकता की बात सोचना बेइर्मानी होगी। इस तरह के लोगों के बीच सत्ता परिवतर्न का दौर कभी भी देश एवं अवाम को समस्याओं से निजात नहीं दिला पायेगा। साफ छवि वाला नेतृृत्व ही भ्रष्टाचार रहित साम्राज्य स्थपित कर सकता है जहां छलियों का राज न हो। इस विषय पर राष्ट्रहित में सोचने वाले सभी देश प्रेमीजनों को मंथन करना चाहिए एवं लोकतंत्र में बढ़ते छलियों, माफियाओं के कदम रोकने का साथर्क प्रयास करना चाहिए। तभी सत्ता परिवतर्न का अर्थ साथर्क हो सकेगा। सभी को मिलकर भारतीय संविधान का स्वरूप ऐसा तय करना चाहिए जिससे लोकतंत्र में छलियों का साम्राज्य समाप्त हो!