ठेका पध्दति से भलीभांति प्राय: सभी परिचित हैं। जहां काम तो है पर दाम नहीं। दाम नहीं से तात्पर्य है, जिस अनुपात में काम लिया जाता उस अनुपात में मजदूरी नहीं दी जाती। मजबूरी में मजदूरी का वास्तविक स्वरूप इस पध्दति में आज तक उजागर नहीं हो पाया है। वास्तविक मजदूरी का अधिकांश हिस्सा बंटादारी में विभाजित होकर शोषणीय प्रवृत्ति को जन्म दे डालता है जिससे इस तरह की व्यवस्था में असंतोष उभरना स्वाभाविक है। इस तरह के परिवेश प्राय: निजी क्षेत्र में देखने को मिलते हैं जहां ठेकेदार में लाभांश कमाने की सर्वाधिक प्रवृत्ति समाई नजर आती है। इस प्रक्रिया में उचित मजदूरी एवं सामाजिक सुरक्षा का प्रश्न ही नही ंउभरता। काम करने वाले समूह के मन में सदा ही अनिश्चित भविष्य के प्रति भय बना रहता है तथा पग अस्थिर देखे जा सकते हैं। इस तरह के परिवेश में सदा ही अपने आपको उपेक्षित महसूस करते विकल्प की तलाश में भटकता रहता है जिससे उसका तन तो कहीं ओर तथा मन कहीं ओर नजर आता है। इस तरह असंतोष भरे वातावरण में उसके मन में पलायन घर कर लेता है। इस तरह की स्थिति अब सरकारी क्षेत्र में भी देखने को मिलने लगी है। पूर्व में सरकार की छत्रछाया में ये ठेकेदार फल-फूल रहे थे, अब स्वयं सरकार ही ठेकेदार का स्वरूप धारण कर चुकी है। जिसके तहत आज उच्च शिक्षा प्राप्त तकनीकी क्षेत्र के स्नातक सबसे ज्यादा शिकार देखे जा सकते हैं। राजस्थान प्रदेश में विद्युत विभाग के तहत हो रही कनिष्ठ अभियंताओं की भर्ती को इस दिशा में देखा जा सकता है। जिन्हें चयन उपरान्त दो वर्षों हेतु मात्र 6450रू. के मानदेय पर अपनी सेवाएं देने हेतु प्रतिनियुक्ति दी जाती है तदोपरान्त वेतनमान उन्हें प्रदान किया जाता है। इस तरह के हालात में चार वर्षीय इंजीनियरिंग क्षेत्र में शिक्षा पाने के उपरान्त बेहतर वेतन एवं परिवेश पाने की लालसा मन में रखने वालों की भावनाएं कुंठित होकर रह जाती हैं। बेरोजगारी के दौर में वे इस तरह के परिवेश स्वीकार तो कर लेते हैं परन्तु असंतोष भरे परिवेश में उन सभी का मन विकल्प की तलाश में भटकता नजर आता है। फिलहाल राजस्थान की प्रदेश सरकार ने इस दिशा में विभागीय तौर पर पलायन कर रहे अभियंताओं को रोके जाने हेतु वेतन बढ़ाये जाने की मांग पर सहमति जताते हुए बिजली की पांच कंपनियों में प्रोबेशनरी इंजीनियरों का प्रारंभिक वेतन बढ़ाये जाने को स्वीकृति तो दे दी है परन्तु इस दिशा में की जा रही वृध्दि बाजार के पैमाने से अभी भी काफी कम है। डिग्रीधारी अभियंताओं को निजी क्षेत्र में प्रारंभिक तौर पर मिलने वाली पगार से यह रकम आधी ही है। बढ़ती महंगाई के आगे इस तरह के पगार के बीच युवा पीढ़ी को रोक पाना फिर भी संभव नहीं हो सकेगा। विचारणीय मुद्दा है।
आज रोजगार के क्षेत्र में आयी मल्टीइंटरनेशनल कंपनियां जहां स्नातक इंजीनियरों को प्रारंभिक दौर में कम से कम 15000रू. एवं अन्य सुविधाएं प्रदान कर रही हैं, जहां अच्छे पैकेज की व्यवस्था दिख रही हो, इस तरह के हालात में राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त योजना में असंतोष उभरना स्वाभाविक है। जिससे इस विभाग में पदों की स्थिति एक समय अन्तराल के उपरान्त खाली देखी जाती है। जिसका कार्यक्षेत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखा जा सकता है। इस तरह के क्षेत्र में स्नातक अभियंताओं के मन में ये भावना भी कुंठित भाव उजागर कर रही है जहां दूसरे राज्यों में प्रशिक्षण के दौरान ही पूर्ण वेतनमान एवं स्नातक योग्य पद उपलब्ध कर दिये जाते हों, वहीं राजस्थान प्रदेश में इस क्षेत्र में अंतराल देखा जा सकता है। राजस्थान प्रदेश में डिप्लोमा एवं डिग्री इंजीनियरों में प्रारंभिक दौर पर कोई अंतर नहीं है जहां दूसरे राज्यों में कनिष्ठ अभियंता पर डिप्लोमा कोर्स की योग्यता वाले लिये जाते हैं वहीं राजस्थान प्रदेश में इस पद हेतु डिग्री कोर्स की योग्यता का पैमाना तय है। इस तरह के हालात से भी इस क्षेत्र में स्नातक अभियंताओं के मन में आक्रोशित एवं कुंठित भाव पनपते देखे जा सकते हैं जिसके कारण समय मिलते ही इनके पग पलायन की ओर बढ़ चलते हैं। इस तरह के हालात राज्य सरकार के अधीनस्थ समस्त सेवाओं के तहत देखे जा सकते हैं। जहां जन स्वास्थ्य, सड़क, परिवहन, जलदाय आदि विभाग शामिल हैं। इन सभी विभागों में अन्य राज्यों की अपेक्षा इस राज्य में लागू पद व वेतनमान के अन्तराल से उपजे स्नातक अभियंताओं सहित समकक्षीय योग्यता वाली युवा पीढ़ी के मन में भारी असंतोष पनप रहा है जिस पर मंथन किया जाना आवश्यक है।
ठेके का दूसरा रूप राज्य सरकार के अधीनस्थ सेवाओं में खाली पदों के तहत हो रही नियुक्तियों के दौरान देखा जा सकता है जहां अस्थायी तौर पर नियुक्तियां जारी हैं। इस तरह के पदों पर भी कार्यरत लोगों को सही ढंग से वेतनमान एवं सुविधाएं देने की व्यवस्था न होकर ठेकेदार की ही तरह अल्प वेतन एवं सुविधाओं से वंचित किये जाने की प्रक्रिया जारी है। जहां मजबूरी का पूरा-पूरा लाभ उठाये जाने की परंपरा लागू है। राज्य पथ परिवहन निगम, विद्युत, चिकित्सा, शिक्षा, जलदाय, स्वास्थ्य, सार्वजनिक निर्माण सहित अन्य विभागों में अस्थायी तौर पर नियुक्तियों के स्वरूप को देखा जा सकता है। जिससे उभरते यहां असंतोष को नकारा नहीं जा सकता।
युवा पीढ़ी में भावी निर्माण की आधारभूमि समाहित होती है। यह हमारी अनमोल धरा है जिसकी रक्षा करना एवं उनके अंदर पनपते असंतुष्ट भाव को दूर कर पलायन से रोकना सरकार का दायित्व है। काम के अनुसार दाम के सिध्दान्त को सही ढंग से अमल में लाने एवं व्यवस्था से उभरते असंतोष को दूर कर सुव्यवस्थित व्यवस्था दिये जाने का भी दायित्व सरकार के कंधों पर होता है। जनतंत्र में सरकार ही जनता की सर्वोच्च कार्यपालिका मानी गयी है। जिन्हें जनहित एवं राष्ट्रहित में सुव्यवस्थित व्यवस्था देने का संपूर्ण अधिकार है। ठेकेदार की स्वहित में उभरी गलत परंपराओं को रोकना सरकार का दायित्व है। जब सरकार ही स्वयं ठेकेदार का रूप धारण कर स्वहित में शोषणीय प्रवृत्ति को अपनाने लगे तो इस तरह के परिवेश से उभरे असंतोष से बच पाना नामुमकिन है। इस दिशा में मंथन होना चाहिए। आज अपने क्रियाकलापों से सरकार ही सबसे बड़े ठेकेदार का स्वरूप धारण करती जा रही है। जो जनतंत्र के विपरीत परिदृश्य को उजागर करता है। इस स्वरूप में अपनी कार्यशैली से बदलाव लाकर उभरते असंतोष को दूर करने का भरपूर प्रयास ही सही जनतंत्र को उभार सकता है।
आज की हर सरकार सबसे बड़ा ठेकेदार बन चुकी है। यह स्वरूप उसके सामाजिक सरोकार को साफ-साफ नकारता है। जिससे सरकार एवं आम जनसमूह के बीच दिन पर दिन अंतराल बढ़ता ही जा रहा है। इस तरह की स्थितियां प्रदेश से लेकर केन्द्र तक फैले क्रियाकलापों के तहत देखी जा सकती है। इस तरह के हालात असंतोष के कारण बनते जा रहे हैं। जिससे सरकार पर से आम जनता का विश्वास धीरे-धीरे उठने लगा है। जनहित एवं राष्ट्रहित में यह जरूरी है कि अपने सरोकार को बनाये रखने के लिए सरकार ठेकेदारी प्रवृत्ति का त्याग करे तभी आम जन का विश्वास वर्तमान जनतंत्र के प्रति उभर सकता है।
Monday, July 14, 2008
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