Monday, July 14, 2008

महंगाई की मार पर करार के लिए बेकरार

दिन पर दिन महंगाई बढ़ती ही जा रही है। बाजार-भाव आसमान छूने लगे हैं। एक हफ्ते के दौरान ही महंगाई की दर 8.5 फीसदी से बढ़कर 11.5 फीसदी होने जा रही है। इस कमरतोड़ महंगाई की मार से देश की आम जनता सबसे ज्यादा परेशान नजर आने लगी है। पर केन्द्र सरकार को इस बढ़ती महंगाई की लेशमात्र भी चिंता कहीं नजर नहीं आ रही है। वह तो परमाणु करार के पीछे बेकरार हो रही है। परमाणु करार को लेकर वर्तमान केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा चिंतित व परेशान नजर आ रही है जबकि सरकार के विशेष सहयोगी वामदल इस करार के विरोध में बार-बार अपना मत जताते नजर आ रहे हैं। साथ ही यह भी कहते नजर आ रहे हैं कि सरकार को कोई खतरा नहीं। बढ़ती महंगाई को लेकर अपने आप को आम जनता का सबसे ज्यादा हितैषी बताने वाले यह वामदल भी फिलहाल मौन ही दिखाई दे रहे हैं। विपक्ष में खड़ी भाजपा की इस दिशा में सुगबुगाहट राजनीतिक लाभांश के मार्ग में सक्रिय होती दिखाई दे रही है। आज इस तरह के पूरे परिवेश का प्रतिकूल प्रभाव बाजार पर पड़ता दिखाई दिखाई दे रहा है। जहां बाजार से अब सामान भी धीरे-धीरे गायब होने लगे हैं। इस तरह के हालात में उपभोक्ताओं की आवश्यक वस्तुओं की मांग एवं बाजार में कमी महंगाई को बढ़ाने में सहायक सिध्द हो रही है। जिसे कालाबाजारी का नाम भी दिया जा सकता है। इस तरह की विकट स्थिति को पैदा कर अवैध रूप से काला धन बटोरे जाने की यहां परंपरा पूर्व से ही रही है जहां अप्रत्यक्ष रूप से जारी राजनीतिक संरक्षण को देखा जा सकता है। बाजार को अनियंत्रित किये जाने की बागडोर प्राय: पूंजीपति वर्ग के हाथ ही होती है जिस पर लगाम नहीं कसने से बाजार का संतुलन बिगड़ना स्वाभाविक है।
आज हमारी मांग बढ़ती जा रही है। आधुनिक लिबास के रंग-ढंग एवं ठाठ-बाट खर्च की सीमा को बढ़ाते जा रहे हैं। इस पैमाने पर संचित आय भी संकुचित होती जा रही है। मल्टीइंटरनेशनल कंपनियों के पसरते पग एवं उससे उभरे बाजार के हालात की चकाचौंध ने भारतीय आम जनजीवन का जीना दूर्भर कर दिया है। इस तरह के परिवेश भारत जैसे विशाल जनसंख्या के हित में कदापि नहीं है जहां आज भी अधिकांश जनजीवन दैनिक मजदूरी एवं फुटपाथ की जिंदगी जी रहा है। जहां जिन्हें हर पल रोटी के लाले पड़े रहते हैं। मजदूरी नहीं मिली तो रोटी भी छिन जाती है। इस तरह के परिवेश में जीवनयापन कर रहे लोगों को ऊपर उठाने का संकल्प लेकर संसद तक पहुंचने वाले जनप्रतिनिधि पूंजीवादी व्यवस्था के तहत निर्मित चकाचौंध की दुनिया में उलझकर सबकुछ यथार्थ को भूल जाते हैं जिसके कारण आज देश में दिन पर दिन बढ़ती जा रही महंगाई इस तरह के जीवनयापन करने वालों को ग्रास बनाती जा रही है।
पूर्व में परमाणु क्षेत्र में केन्द्र की वर्तमान सरकार के नेतृत्व में यूएसए से किये समझौते को अंतिम अमली जामा पहनाने के प्रयास अभी भी जारी हैं। जिसके विरोध में केन्द्र सरकार के प्रमुख सहयोगी वामदलों द्वारा गतिरोध भी देखा जा सकता है। परमाणु क्षेत्र में किये गये समझौते के लागू होने के उपरान्त देश में कौनसे हालात उभरेंगे, यह तो मुद्दा अभी मंथन के गर्भ में छिपा है परन्तु पूंजीवादी व्यवस्था से पनपी महंगाई का जो स्वरूप उभरकर सामने आ रहा है, उसका निदान ढूंढना आज अति आवश्यक है। पूंजीवादी देश की नजर भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश पर पहले से ही लगी हुई है। विश्व में सबसे बड़ा बाजार भारत ही है। जहां से धन उगाही सबसे ज्यादा की जा सकती है। भारत की स्वतंत्रता एवं विकास विश्व के अन्य विकसित देशों की आंखों की किरकिरी बन चुका है। जिसके परिणामस्वरूप पड़ौसी राष्ट्रों के माध्यम से यहां जारी आतंकवादी गतिविधियां एवं लोकतांत्रिक स्वरूप पर अप्रत्यक्ष रूप से उभरते एकाधिपत्य को देखा जा सकता है। जहां देश के लोकतांत्रिक निर्णय में कहीं न कहीं विश्व की शक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से शामिल नजर आ रही है। तभी तो देश में उभरी ज्वलंत समस्या महंगाई की चिंता को छोड़ आज सरकार परमाणु क्षेत्र में किये करार को लेकर बेकरार हो रही है। जबकि इस तरह के गंभीर मुद्दे से सरकार का आगामी भविष्य भी जुड़ा हुआ है। यदि समय रहते महंगाई पर नियंत्रण नहीं हो पाया तो देश में होने वाले चुनाव के दौरान वर्तमान केन्द्र सरकार को भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस तरह के हालात से सरकार के जुड़े यहां के जनप्रतिनिधि एवं वर्तमान सजग प्रहरी भलीभांति परिचित हैं परन्तु इस तरह के गंभीर मुद्दे को छोड़ करार के लिए बेकरार होने के पीछे कौनसी परिस्थितियां हैं, चिंतन का विषय है। जहां इनके अस्तित्व के गले में खतरे की घंटी बंधी दिखाई दे रही है।
पेट्रोलियम पदार्थों में हुई वृध्दि को महंगाई बढ़ने का मूल कारण तो बताया जा रहा है। इस तरह की वृध्दि भी महंगाई को बढ़ाने में सहायक तो है परन्तु बाजार का अनियंत्रित होना एवं कालाबाजारी का बढ़ना भी इस दिशा में प्रमुख भूमिका बना हुई है। इस तरह के परिवेश निश्चित तौर पर पूंजीवादी व्यवस्था की ही देन है। बाजार को नियंत्रण में रखने एवं कालाबाजारी रोके जाने के सार्थक प्रयास किये जाने की आज महती आवश्यकता है। इस दिशा में सरकार ही ठोस कदम उठा सकती है। वर्तमान हालात में परमाणु करार के बजाय राष्ट्रहित एवं जनहित में बढ़ती महंगाई को रोके जाने के ठोस सकारात्मक कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। देश के विकास में आमजन को राहत एवं सुव्यवस्थित व्यवस्था उपलब्ध कराना प्रमुख पृष्ठभूमि के तहत आता है। बढ़ती जा रही महंगाई से देश में उभरा असंतोष विकास के मार्ग में बाधा ही उत्पन्न कर सकता है। इस यथार्थ को समझा जाना चाहिए। महंगाई की मार से आम जन को बचाते हुए परमाणु करार के मुद्दे पर राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर गंभीरता से हर पहलू पर मंथन किया जाना चाहिए। इस दिशा में किसी भी तरह की जल्दबाजी करना राष्ट्रहित में कदापि नहीं माना जा सकता। परमाणु करार पूंजीवादी व्यवस्था से जुड़े विश्व के सबसे बड़े कूटनीतिज्ञ राष्ट्र अमेरिका से जुड़ा प्रसंग है जो पूर्व में देश द्वारा परमाणु क्षेत्र में किये गये पोकरण परीक्षण प्रकरण पर अपनी नाराजगी जता चुका है। इस देश को भारत की इलैक्ट्रोनिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भी कभी रास नहीं आई थी। इस तरह के प्रसंग पर भी गंभीरता से मंथन किया जाना अति आवश्यक है। इस तरह के ज्वलंत मुद्दे जो सरकार को कटघरे में खड़ा कर विवादास्पद बन सकते हैं, राष्ट्रहित में कदापि नहीं हो सकते। महंगाई की मार, पर करार के लिए सरकार हो रही बेकरार की पृष्ठभूमि के इर्द-गिर्द उभरते सवाल पर मंथन होना राष्ट्रहित में अति आवश्यक है।

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