युध्द और आतंकवाद दोनों ही अहितकारी राजनीतिक प्रेरित स्वयंभू पृष्ठभूमि से जुड़ी गतिविधियां है जिनसे आज देश ही नहीं, संपूर्ण विश्व पटल का मानव समुदाय चिंतित एवं दुखी है। एक प्रत्यक्ष है तो दूसरा अप्रत्यक्ष। दोनों हालात में मानवता का हनन होता है। आतंकवाद युध्द से भी ज्यादा खतरनाक है। युध्द में दुश्मन सामने होता है तथा उससे टक्कर लेने की पूरी तैयारी होती है। परन्तु आतंकवाद में दुश्मन साथ-साथ रहते हुए पीठ पीछे से अचानक आक्रमण कर देता है जिसका परिणाम सामने है। देश में आतंकवाद का बढ़ता जोर आज चुनौती का रूप ले चुका है। जब भी विकास की ओर हमारे बढ़ते कदम दिखाई देते उस कदम को अस्थिर करने की दिशा में विश्व की गुमनाम शक्तियां आतंकवाद के सहारे यहां सक्रिय हो जाती है। जिसे अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं यहां राजनीतिक संरक्षण भी मिल रहा है। कुछ दिन पूर्व जयपुर में बम विस्फोटक आतंकवादी आग ठंडी नहीं हुई कि देश के मशहूर व्यापारिक व तकनीकी क्षेत्र में विकसित शहर बैंगलोर के साथ-साथ अहमदाबाद, सूरत इसकी चपेट में आ गये। देश के अन्य प्रगतिशील व्यापारिक शहर को अभी से चुनौती भी मिलने लगी है। आतंकवाद का बढ़ता यह सिलसिला हमारे विकास में बाधक तो है ही, भविष्य में गंभीर चुनौतियों का संकेत भी दे रहा है। इस तरह के परिवेश को अघोषित युध्द की भी संज्ञा दिया जाना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
देश में अभी हुये बम काण्ड में करीब 50 लोगों के मरने एवं 300 से अधिक घायल होने की खबर दिल दहला देती है। इस तरह की घटनाएं दिन पर दिन वीभत्स रूप धारण करती जा रही हैं तथा हर बार की तरह इस घटना को भी अंजाम देने वाले तत्व साफ-साफ बच जा रहे हैं। घटना घटित होते ही एक बार पूरा परिवेश जागृत तो हो जाता है परन्तु एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के इस सिलसिले के साथ सब कुछ टांय-टांय फिस्स हो जाता है। इन घटित घटनाओं पर गठित समितियों का आज तक कोई सकारात्मक हल सामने नहीं आया है। आतंकवादी देश के अंदर जगह-जगह, समय-समय पर अपने कारनामे दिखाते जा रहे हैं। निर्दोष लोग शिकार होते जा रहे हैं। राजनीतिज्ञ बयानबाजी से अपना काम निकालते जा रहे हैं। इस दिशा में आज तक कोई ठोस कदम का स्वरूप नजर नहीं आ रहा है जिसके कारण आतंकवाद अपना पग पसारता जा रहा है। देश में घटित आतंकवादी गतिविधियों पर फिलहाल प्रशासन एवं राजनीतिज्ञों को पूर्व की भांति सजग तो देखा जा सकता है परन्तु एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के सिवाय इस बार भी कुछ हाथ लगता नहीं दिखाई देता। इस तरह के हालात भविष्य में आतंकवादी गतिविधियों को किस प्रकार रोक पायेंगे, विचारणीय मुद्दा है।
देश में जब कभी भी आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े समूह की धरपकड़ की संभावनाएं दिखाई देती है, उसके बचाव के रास्ते भी तैयार हो जाते हैं जिसके कारण इस तरह की गतिविधियों से जुड़ा साफ-साफ बच जाता है तथा एक नई योजना को अंजाम देने में सक्रिय ही नहीं होता, सफल भी हो जाता है। मुंबई बम काण्ड से लेकर देश के विभिन्न भागों में हुये बम काण्ड के दौरान पकड़े गये आतंकवादी समूह से जुड़े प्रतिनिधियों पर की गई कार्यवाही का जो स्वरूप उभरकर सामने आ रहा है, उससे आतंकवाद से निजात पाने के हालात दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। इसी प्रक्रिया के तहत अभी तक जो भी पकड़े गये हैं उन्हें कहीं न कहीं से अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण तो मिल ही रहा है जो संदेह का लाभ लेकर साफ-साफ बच रहे हैं। संसद पर आक्रमण करने वाले अफजल को बचाने की मुहिम में यहां जो प्रक्रिया जारी रही उसे कैसे नकारा जा सकता है। मुंबई, जयपुर, हैदराबाद, बनारस आदि शहरों में हुये बम काण्ड को लेकर की जा रही कार्यवाहियों का अभी तक जो स्वरूप सामने आया है, नकारात्मक पृष्ठभूमि ही उभार सका है। अभी हाल में हुए बम काण्ड में जिस तरह की बयानबाजी जारी है, इस तरह के हालात में आतंकवाद का निदान ढूंढ पाना कहां तक संभव है, विचार किया जाना चाहिए।
पाक-भारत के संबंध सुधारने की दिशा में अथक प्रयास हुए। वर्षों से बंद पड़ी रेल-बस सेवा के मार्ग के खोल दिये गये। परिणाम यह हुआ कि देश में आतंकवादी गतिविधियां तेज हो गई। जगह-जगह बम काण्ड होने लगे। कब कहां क्या हो जाये, कह पाना मुश्किल है। जब आतंकवाद को पनाह घर से ही मिलने लगे, तो इस तरह के खौफनाक खेल से बच पाना काफी मुश्किल है। देश में इस तरह के परिवेश से जुड़े हालात इस बात को कहीं न कहीं स्वीकार तो कर रहे हैं कि आतंकवाद को देश के भीतर संरक्षण मिल रहा है। जो इस तरह की गतिविधियों का समर्थक है, या संरक्षक है वह इस देश का हो ही नहीं सकता। विचारणीय है।
आतंकवाद आज छद्म युध्द का रूप ले चुका है जिसे स्वयंभू परिवेश से जुड़े समूह का समर्थन अप्रत्यक्ष रूप से मिल रहा है। देश को अस्थिर करने का विश्वस्तरीय ठेका जिनके पास सुरक्षित है, इस तरह के समूह देश के भीतर सक्रिय हैं, जिनकी छानबीन होना बहुत जरूरी है। देश में प्रशासनिक तौर पर खुफिया तंत्र को मजबूत एवं स्वतंत्र होना बहुत जरूरी है। इस दिशा में उभरी राजनीतिक परिस्थितियां इसके वास्तविक स्वरूप को नकारात्मक कर सकती है। आतंकवाद सभी के लिए घातक है। आतंकवादी जिसका स्वरूप सौदागर के रूप में हो चुका है, उसके पल्लू में केवल उसका हित समाया है, वह न तो किसी देश का हितैषी हो सकता व न ही मानव जाति का। उसका उद्देश्य स्वहित में अर्थ उपार्जन मात्र है इसलिए उसे भाई की संज्ञा से संबोधित किया जाना भी अप्रासंगिक लगता है। इस तरह के परिवेश से जुड़े लोगों की जांच निष्पक्ष रूप से की जानी चाहिए। इस तरह की प्रवृत्ति से जुड़े लोग हर जगह अपना आसन जमाये बैठे हैं। खुफिया तंत्र स्वतंत्र होकर इस तरह के लोगों की यदि परख कर सके तथा देश की सीमा से अंदर आने वाले बाहरी अज्ञात व्यक्तियों के परिवेश को रोका जा सके तो आतंकवाद से लड़ पाना संभव हो सकेगा। आज यह युध्द से भी ज्यादा खतरनाक हो चला है। इस तरह के परिवेश से लड़ने के लिए स्वहित प्रेरित राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में मंथन करना एवं सकारात्मक कदम उठाना जरूरी है।
-स्वतंत्र पत्रकार, डी-9, IIIए, खेतड़ीनगर-333504 (राज.)
Thursday, July 31, 2008
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