Saturday, June 19, 2010

अनोखे तीर

वे लेते हैं तो देते भी ,
इसलिए पकड़ें नहीं जाते ।
वे लेते हैं तो देते नहीं ,
इसलिए पकड़ लिए जाते।
वे न लेते हैं न देते हैं,
इसलिए परेशां किये जाते हैं।
सदियों से गड़ा शिलान्यास का पत्थर ,
बन गया वही अब रास्ते का पत्थर ।
फाइलों के पर अब झरने लगे हैं,
रास्ते में है अभी बहुत से दफ्तर ।
अंधे को आँख क्या मिली ,
सूरज से बातें करने लगा ,
परिणाम यह हुआ ,
वह फिर से अंधा हो गया ।
पान खाने का अर्थ नहीं ,
कि आसमां पर थूको ,
पीकदान तुम्हारे पास है,
अपनी हैसियत मत भूलो ।
कल थोड़ी सी जगह मांगी ,
सिर छुपाने के लिए ।
आज वे अन्दर ,
मैं बाहर ।
जब तक जिंदे थे ज़नाब,
उन्हें दूध भी देने आये नहीं,
मर गए तो उनके क़ब्र पर ,
मक्खन आज लगा रहे हैं .
जिस जगह छाया सन्नाटा मौत का,,
उस जगह आदमी अब क्या करेगा?
दब गयी पैरौं तले जहाँ हर कली,
बाग़ का माली बेचारा क्या करेगा ?
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