Saturday, June 12, 2010

काव्य संसार

लोकतंत्र

लोकतंत्र की बिगड़ी काया , प्रजातंत्र की अजब कहानी ,
जनता के शासन में अब भी , शासन करते राजा -रानी।
साक्षी है इतिहास देश का , बदले हुए हर परिवेश का ,
जिसने ज्यादा जो भर माया , उसने ही यहाँ राज चलाया ।
जिसकी लाठी उसी की भैंस , चरितार्थ रही यही कहानी ,
जनता के शासन ---------------------------------राजा-रानी ।
कोई नहीं यहाँ नेक है ,जहां पक्ष - विपक्ष दोनों एक है ,
बंदर बाँट सब कर रहे है , पूरे देश को चर रहे है ।
इनके कर्मो से ही सुखा , झरना -नदियों का सब पानी ,
जनता के शासन ------------------------------राजा-रानी ।
पढे -लिखे सब हुए बेकार, अनपढ़ की बन गई सरकार ,
जंगल में जो घूम रहे है ,वे संसद में दिख रहे है ।
लुट रहे दोनों हाथों से , कर रहे अपनी मनमानी ,
जनता के शासन------ ------------------------राजा -रानी ।
नकली- असली दिख रहा है, किस्मत सबकी लिख रहा है ,
अंधे के हाथ लगा बटेर , बगुला करता हेर -फेर ।
मिलावट जो क्रम जारी , उल्टा पाठ पढे अब ज्ञानी ,
जनता के शासन -------------------------राजा - रानी ।
भोली भाली जनता सारी , फँस गई अब तो बेचारी ,
फैल रहा ऐसा व्यापार , अब दिन रहा सबका अधिकार ।
मौन होकर चुप -चाप सहना , गुलामी की है यह कहानी ,
जो भी आया है शासन में , उसने की अपनी मनमानी ।
जनता के शासन में अब भी शासन करते रजा - रानी । ।
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