भोजपुरी गीत
एगो नीक परम्परा !
भोरे किरिनियाँ पहिले , उठत रहल तूं ,
उठि के बड़न के पांव , छुअत रहल तूं ।
कितना नीक लागत रहे ,इ रहनियाँ बाबू ,
सब भूल गइल ,जब से शहर गइल बाबू!
अब दिने-दिन नीक आदति छुटत जात बा ,
जितना बाउर आदति बा ,जुड़त जात बा ।
कइसे सुधरी बिगड़ल इ अदतिया बाबू ,
इ सब देखि - देखि के आँखि फाटल बाबू !
पेट काटि -काटि के पढ़वनी तोहके ,
करज लेइके विदेश भेजनी तोहके ।
ओहिजा जाइके सब भूल जइब बाबू,
इ जानि के भी हम ना टोकनी बाबू !
थोड़ा सा भी लिहाज करे के त चाहिं ,
इ जे कइल,ओकर यादि रहे के त चाहिं ।
इतना मतलबी मत तूं बन जा बाबू ,
कि तोहरा जनम पर शरम आवे बाबू!
- भरत मिश्र प्राची , जयपुर , 9414541326
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