Thursday, November 24, 2016

विदेशी सामानों के बहिष्कार के बजाय प्रतिस्पद्र्धा की दौड़ में आगे निकलना जरूरी!

विदेशी सामानों के बहिष्कार के बजाय प्रतिस्पद्र्धा की दौड़ में आगे निकलना जरूरी!
- भरत मिश्र प्राची
      आजकल देश में विेदेशी सामानों की खरीदारी का जोरदार विरोध हो रहा है। इस दिशा में विशेष रूप से चाईना मेड सामानों की खरीद का विरोध जारी है। इस तरह की प्रक्रिया चीन द्वारा भारत के विरूद्ध की जा रही गतिविधियों का नतीजा है। जिस देश का सबसे जयादा सामान भारत के बाजार में  बिक रहा हो, उस देश के अप्रासंगिक कदम का विरोध होना स्वाभाविक है। पर जब से खुले बाजार नीति के दायरे में हमारा देश आया है तब से भारतीय बाजार में सबसे ज्यादा चाईना मेड सामानों की भरमार ही रही है।नहीं गई, सस्ता होने के कारण इसकी खरीदारी भी बढ़ गई। चाईना मेड सामान जापानी एवं अन्य विदेशी माॅडल में भी समा गये।  सस्ती कीमत एवं आधुनिक तड़क भड़क आकर्षक बनावट के कारण आज चाईना मेड सामान भारत के हर घर में समा चुका है। हर युवा के दिल में घर कर बैठा है। त्योहार से लेकर घर के साज सज्जा व हमारी हर सुविधायुक्त सामानों के साथ आज चाईना सबके दिल का स्वामी बन बैठा है। इस तरह के हालात में इस तरह के परिवेश से जुदा होना इतना आसान नहीं ।
       उपभोक्ता की अपनी संस्कृृति होती है। बाजार में उसे जो सामान सस्ता मिलेगा, जिसमें चमक - धमक होगी, उसी की ओर आकर्षित होगा। उसे ही खरीदेगा । जो माल महंगा होगा, उसकी ओर आम जन की खरीदारी कम ही दिखाई देगी। भारतीय बाजार में बहुत कम ऐसे उपभोक्ता आते है जो कीमत पर ध्यान न देते हो, माल की गुणवत्ता तलाशते दिखाई देते। अधिकांश उपभोक्ता सस्तेपन की ओर झुकते दिखाई देते है। इस कारण बाजार में चाईना मेड सामान की खरीदारी सर्वाधिक देखी जा सकती है। जिससे सर्वाधिक भारतीय मुद्रा चीन के खाते में जा रही है। उससे चीन की अर्थ व्यवस्था मजबूत होती है, भारत की नहीं । यदि इस परिवेश से भारतीय उपभोक्ता को अलग करना है तो चाईना मेड सामान का वहिष्कार न करके भारतीय बाजार में प्रतिस्पद्र्धा की दौड़ में आगे निकलकर चाईना मेड से भी बेहतर एवं सस्ता स्वनिर्मित सामान उतारना होगा। तभी आम उपभोक्ता देश द्वारा निर्मित सामान को सर्वाधिक खरीद सकेगा। इसके लिये भ्रष्टाचार रहति  बड़े पैमाने पर गांधी जी के लघु उद्योग का सपना साकार करना होगा।
      इतिहास गवाह है , आजादी एवं अंग्रेजी गुलामी से पूर्व भारतीय बाजार, निर्मित सामान, कला शिल्प में  भारत अन्य देशों के मुकाबले अब्बल रहा है। यहां के कारिगर  भी सदा से विश्वविख्यात रहे है। आज भी विदेशों में अभियंता से लेकर समान्य कारिगर तक सर्वाधिक भारतीय ही मिलंेगे। कृृर्षि के क्षेत्र में यह देश सदा से ही अब्बल रहा है।  हर तरह से अधिक उपज वाली भूमि, माईन्स,जल, जंगल से भरपूर एवं कुशल मेहनती कारिगरों वाला यह देश आज बाजार के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर कर रहा है, विचारणीय पहलू है। सर्वाधिक पशुधनवाला यह देश आज प्शुविहीन हो रहा है। घरों की शोभा बढ़ाने वाले ये पशु सड़कों पर लावारिश घूम रहे है। जिसके कारण दूध की नदी वाले देश में विदेशों की तरह नकली दूध एवं दूध से बने सामान का व्यापार तेजी से फलफूल रहा है। जिसके कारण आज देश विदेशों की संक्रामक बीमारियों का शिकार हो रहा है। दवाई एवं महंगे इलाज व जांच के माध्यम से सर्वाधिक भारतीय मुद्रा विदेश में जा रहा है। इस तरह के परिवेश हमारी अस्मिता को चुनौति दे रहे है, जिसपर मंथन करना आवश्यक है। देश हित में जरूरी है कि आज के प्रतिस्पद्र्धा की दौड़ में आगे निकलकर विश्वस्तर पर भारतीय बाजार को स्थापित किया जाय एवं विदेशी सामानों के माध्यम से जा रहे भारतीय मुद्रा को, अपने घरेलू उद्योगों में विदेशी सामानों से सस्तें एवं बेहतर स्वनिर्मित सामान तैयार कर, रोका जाय।
      इस बार दीपावली पर्व पर अधिकांश भारतीय परिवार बाजारों में घरों की रोशनी एवं सजावट के लिये चाईना मेड सामानों की जगह भारतीय सामानों को तलाशते नजर आये, नहीं मिलने पर घरों को पूर्व की भाॅति नहीं सजाया। इस भावना में देश प्रेम की भावना छिपी है जिसका समावेश चीन से भी बेहतर भारत में लघु उद्योग के विकास में किया जाना चाहिए ।
-स्वतंत्र पत्रकार, डी-96, प्प्प्ए, खेतड़ीनगर- 333504 (राज.). म्उंपस.चतंबीप120753/हउंपसण्बवउ
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