Tuesday, December 16, 2008

आर्थिक मंदी की छाया से बदलती कॉपर की काया

एशिया का सबसे बड़े ताम्र उद्योग हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड पर भी विश्व में छायी आर्थिक मंदी की छाया नजर आने लगी है। जहां यह उद्योग विगत घाटे की सीमा को पार करते हुए लाभांश की ओर बढ़ते कदम के बल पर मिनी रत्न से अभी हाल में ही नवाजा गया है। वहीं आज विश्व बाजार में कॉपर के लगातार गिरते जा रहे मूल्य को लेकर भावी भविष्य के प्रति चिंतित दिखने लगा है। इस तरह के हालात में आयातित सांद्रित कॉपर अयस्क से तांबा निकाला जाना कॉफी महंगा पड़ रहा है। इस उद्योग के तहत झारखंड राज्य की घाटशिला यूनिट इंडियन कॉपर कॉम्प्लैक्स, छत्तीसगढ़ राज्य की मलाजखण्ड कॉपर प्रोजेक्ट एवं राजस्थान प्रदेश की खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लैक्स एवं कोलिहान कॉपर माइन्स फिलहाल कार्यरत है। इसी उद्योग का महाराष्ट्र तालोजा कॉपर प्रोजेक्ट भी चालू हालत में है, जहां कॉपर छड़ का उत्पादन होता है। मंदी के दौर से गुजरते उद्योग को बचाने के लिए फिलहाल उच्च प्रबंधक वर्ग ने आयातित सांद्रित अयस्क को मंगाने का कार्यक्रम रोक कर खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लैक्स के स्मेल्टर एवं परिशोधन संयंत्र को अल्प अवधि के लिए बंद रखे जाने का कार्यक्रम बनाया है। जहां फिलहाल स्मेल्टर प्लांट को बंद कर दिया गया है एवं कुछ दिन उपरान्त परिशोधन संयंत्र को भी बंद हो जाने की स्थिति झलक रही है। इन जगहों पर कार्यरत ठेका मजदूरों को तत्काल कार्य से मुक्ति दे दी गई है जिसके वजह से इस वर्ग में उदासी एवं बेचैनी से झलक साफ-साफ देखी जा सकती है। खेतड़ी खदान में संचालित एम.इ.सी.एल. ने भी अपने अस्थायी कर्मचारियों को एक महीने का नोटिस देकर कार्यमुक्ति का पत्र थमा दिया है। जिससे मजदूर वर्ग में काफी असंतोष फैला हुआ है। इस तरह के परिवेश के साथ-साथ अस्थायी रूप से कार्यरत श्रमिक वर्ग में असुरक्षित भविष्य को लेकर चिंता घिर आयी है जहां प्रबंधक वर्ग की ओर से 20 प्रतिशत की कटौती पर स्वैच्छिक रूप से अल्प अवधि अवकाश पर जाने की खबर असंतोष का कारण बनी हुई है। अफवाहों का बाजार भी यहां गर्म देखा जा सकता है। जहां भविष्य को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। प्रबंधक वर्ग की ओर से जहां मंदी के दौर से उद्योग को बचाने की दिशा में इस तरह के कदम को सकारात्मक बताया जा रहा है। वहीं इस तरह के परिवेश में असुरक्षित भविष्य की उभरती छाया से यहां कार्यरत श्रमिक वर्ग में उभरते अशांत भाव को आसानी से देखा जा सकता है। एक तरफ आयातित सांद्रित कॉपर अयस्क को बंद कर दिया गया है तो दूसरी ओर यहां तैयार सांद्रित कॉपर अयस्क को इस उद्योग की दूसरी इकाई झारखंड राज्य में स्थित इंडियन कॉपर कॉम्प्लैक्स को भेजे जाने का क्रम जारी है जहां ट्रांसपोर्ट पर आने वाला अनावश्यक खर्च का भार इस मंदी के दौर में कंपनी पर पड़ता साफ-साफ दिखाई दे रहा है। इस तरह के उभरते परिवेश इस उद्योग को मंदी के दौर से बचाने के कौनसे तरीके का स्वरूप परिलक्षित कर पा रहे हैं, जहां स्मेल्टर प्लांट को बंद कर तैयार सांद्रित अयस्क को दूसरे युनिट भेजा जा रहा है, विचारणीय मुद्दा है। इस तरह के परिवेश पर भी यहां चर्चा का दौर जारी तो है परंतु विरोध के उभरते स्वर कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। इस तरह के हालात में यहां तैयार सांद्रित अयस्क को इकट्ठा कर स्मेल्टर प्लांट को पुन: शीघ्र चालू करने की योजना बनाई जानी चाहिए। इस तरह की भी यहां आम चर्चा तो है परन्तु श्रमिक वर्ग को प्रतिनिधित्व करने वाले सभी संगठन इस दिशा में मौन दिखाई दे रहे हैं।
जहां तक कॉपर अयस्क के भौगोलिक परिवेश की वास्तविकता का प्रश्न है, खेतड़ी कॉपर कॉम्प्लैक्स से जुड़ी शेखावाटी क्षेत्र का बनवास व सिंघाना क्षेत्र अभी भी इस दिशा में अव्वल है। जहां हजारों वर्ष तक अच्छे ग्रेड में तांबा निकाले जाने हेतु 1.8 प्रतिशत का कॉपर अयस्क भूगर्भ में विराजमान है। इस क्षेत्र में बनवास खदान की चर्चा तो कई बार चली। पूर्व में नये सॉफ्ट लगाने हेतु उद्धाटन भी हुआ। खदान को नये सिरे से चालू कर इस क्षेत्र से कॉपर अयस्क निकाले जाने की योजना भी बनी परंतु सभी योजनाएं कागज तक ही सिमट कर गई है। 'सदियों से गड़ा शिलान्यास का पत्थर/बन गया वहीं अब रास्ते का पत्थर। फाइलों के पर अब झरने लगे हैं/रास्ते में अभी बहुत से दफ्तर॥'
वर्तमान हालात में इस उद्योग को सही रूप से मंदी के दौर से बचाने के लिए किसी भी यूनिट को बंद करने के बजाय चालू रखने की प्रक्रिया पर बल दिया जाना चाहिए। आयातित सांद्रित कॉपर अयस्क निश्चित तौर पर महंगा पड रहा होगा। इसे बंद करने का निर्णय तो उचित माना जा सकता है परन्तु यहां तैयार सांद्रित कॉपर अयस्क को बाहर भेजने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता। इसे इकट्ठा कर बंद पड़ी योजनाओं को शीघ्र से शीघ्र चालू करने का जामा पहनाया जाना चाहिए। इस उद्योग को चालू रखने के लिए बनवास क्षेत्र में नई खदान शीघ्र खोले जाने की महती आवश्यकता भी है। कोलिहान एवं खेतड़ी खदाने काफी पुरानी हो चुकी है जहां अयस्क निकालना भी काफी महंगा पड़ सकता है। इस तरह के हालात में बनवास क्षेत्र में नई खदान को शीघ्र चालू कर सिंघाना क्षेत्र तक फैले भूगर्भ के 50 मिलियन टन से भी ज्यादा कॉपर अयस्क को निकाल कर इस उद्योग को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इस क्षेत्र के सांसद भी वर्तमान में केन्द्रीय खान मंत्री है। जिनसे काफी अपेक्षाएं है। इस उद्योग के अन्दर हो रहे अनावश्यक खर्च लापरवाही एवं चोरी जैसे अनुचित कार्यों पर प्रतिबंध लगाकर उद्योग को मंदी के दौर से बचाया जा सकता है।
बाजार भाव तो चढ़ते उतरते रहेंगे। इस उद्योग को अपने क्षेत्र में उपलब्ध कॉपर अयस्क को प्रचुर मात्रा में निकालकर स्वावलम्बी बनाये जाने की प्रक्रिया ही इसे बचा सकती है एवं विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने की ताकत पैदा कर सकती है। कुशल प्रबंधन, संरक्षण, आत्मविश्वास एवं अयस्क के क्षेत्र में स्वावलंबन के सिध्दान्त ही इस उद्योग की गरिमा को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए लगातार लाभांश की ओर इसके कदम बढा सकेंगे। इंतजार है कि यह उद्योग भी स्वावलंबी बनकर अन्य उद्योगों की भांति मिनी रत्न से नवरत्न की श्रेणी में अपने आपको खड़ा कर सके। इस दिशा में सभी के सकारात्मक सोच एवं कदम की महती आवश्यकता है जो आर्थिक मंदी की छाया से कॉपर की बदलती काया को बेहतर स्वरूप दे सकती है।

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