Tuesday, December 9, 2008

मुद्दों की राजनीति के बीच उलझ गया है चुनावी समर

देश के विभिन्न 6 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव वर्तमान में अनेक मुद्दों के बीच उलझे दिखाई दे रहे हैं जिससे किसी भी राज्य में स्पष्ट जनादेश के लक्षण नजर नहीं आ रहे। अर्थबल एवं बाहूबल से प्रभावित लोकतंत्र की यह प्रक्रिया आज विशेष रूप से जातीय संघर्ष, वर्ग विभेद, बाहरी प्रत्याशी एवं भाई-भतीजावाद से प्रेरित विरोधी पृष्ठभूमि के बीच उलझकर रह गई। जिसकी छाप दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस एवं भाजपा पर पड़ती दिखाई दे रही है। टिकट बंटवारे को लेकर इन दोनों दलों में जो मतभेद उभरकर प्रारंभ में सामने आये, वे अंत समय तक गहराते ही जा रहे हैं। जिसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
कुछ राज्यों में प्रारंभिक दौर के मतदान हो चुके हैं तो कुछ राज्यों में बाकी हैं। 4 दिसंबर को अंतिम दौर का मतदान है। मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, राजनीतिक दलों में उत्साह तो देखा जा रहा है परन्तु मतदान के प्रति लोगों में कहीं भी विशेष उत्साह नजर नहीं आ रहा है। जिससे आने वाले समय में लोकतंत्र की इस जागरूक पृष्ठभूमि पर मंडराता खतरा साफ-साफ नजर आ रहा है। इस तरह की उदासीनता का मूल कारण राजनीतिक पृष्ठभूमि में सही नेतृत्व का अभाव है। इस तरह के हालात प्राय: देश के सभी राजनीतिक दलों में उभरते नजर आ रहे हैं। जहां नेतृत्व की परिभाषा प्राय: गौण हो चली है। जहां राजनीति व्यापार का एक केन्द्र बन चली है। जहां केवल मतदाताओं को छलने का ही कार्यक्रम परिलक्षित नजर आ रहा है। असामाजिक तत्वों का राजनीति के क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव ने लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल दी है। जहां आम जन का विश्वास धीरे-धीरे इस तरह के महत्वपूर्ण पहलू पर से उठता जा रहा है। अब सभी राजनीतिक दल इस दिशा में एक जैसे लगने लगे हैं। यह स्थिति मतदान के प्रति उभरती उदासीनता का प्रमुख कारण भी मानी जा रही है। इस विधानसभा चुनाव में भी यह स्थिति देखने को मिलेगी जहां सही मतदान के प्रतिशत ग्राफ पहले से गिरते नजर आयेंगे।
विधानसभा चुनावों से जुड़े अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग कहानी है। जो चुनावी मतदान की आंकलन को प्रभावित कर सकती है। जम्मू-कश्मीर एवं मिजोरम में आतंकवाद का ज्यादा जोर है। जहां इस गंभीर समस्या से निदान पाने के लिए विकल्प की तलाश में इन राज्यों में जुड़े मतदाता अपना निर्णय लेंगे। राजस्थान प्रदेश में सत्तापक्ष भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव को प्रमुखता से लड़ती जहां दिखाई दे रही है वहीं इसके शासन काल में पनपे भ्रष्टाचार को विपक्षी कांग्रेस अपना प्रमुख हथियार बनाकर इस समर में कूद पड़ी है। इन दोनों दलों को प्रदेश में टिकट बंटवारे से उभरे आंतरिक मतभेद से गुजरना पड़ रहा है जहां इन दोनों दलों के दिग्गज समझे जाने वाले नेता कई जगहों पर निर्दलीय रूप से आमने-सामने हैं तो कई अन्य दलों को दामन थाम समर में कूद पड़े हैं। एक तरफ राज्य में विकास का मुद्दा जहां भाजपा शासन काल में हजारों लोगों को रोजगार मिला है एवं कर्मचारियों को संतुष्ट रखने की हर कोशिश की गई है तो दूसरी ओर प्रदेश में आरक्षण से जुड़े जातीय संघर्ष के बीच उभरे मुद्दे एवं टिकट बंटवारे को लेकर उभरे मतभेद को भी इस दल को झेलना पड़ रहा है। इस तरह की परिस्थिति में प्रदेश की जनता किसे महत्व देती है, यह तो चुनाव उपरान्त ही पता चल पायेगा परन्तु वर्तमान हालात में सत्ता पक्ष भाजपा को इस प्रदेश में अनेक मुद्दों के बीच से उलझना पड़ रहा है। जबकि चुनाव की घोषणा के साथ इस दल की प्रदेश में पुन: वापसी विकास के मुद्दे पर नजर आने लगी थी। जो धीरे-धीरे अन्य मुद्दों के बीच उलझ कर आज अस्पष्ट रूप धारण कर चुकी है। इसी तरह के हालात कांग्रेस का भी है जहां उसे बाहरी प्रत्याशी थोपे जाने, नेतृत्व की बागडोर का स्पष्ट रूप न होने एवं भाई-भतीजावाद से प्रेरित विरोधी पृष्ठभूमि को झेलना पड़ रहा है। प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा के साथ-साथ बसपा, सपा, जद सहित अन्य दल एवं बागी के रूप में निर्दलीय प्रत्याशी इस चुनावी समर में नजर आ रहे हैं। इस तरह के हालात के बीच इस प्रदेश में स्पष्ट जनादेश की स्थिति उलझकर रह गई है। छत्तीसगढ़, दिल्ली व मध्यप्रदेश की वस्तुस्थिति इस प्रदेश से भिन्न है। इन राज्यों में जातीय संघर्ष के मुद्दे तो नहीं है परन्तु टिकट के बंटवारे को लेकर उभरे असंतोष जरूर व्याप्त हैं। इस तरह के हालात में स्पष्ट जनादेश की स्थिति किसी भी राज्य में नजर तो नहीं आ रही है परन्तु चुनावी विशेषज्ञ अपने-अपने आंकलन के तरीके पर कहीं कांग्रेस की बढ़त बता रहे हैं तो कहीं भाजपा की। इस तरह की घोषणाओं में हमारे ज्योतिषी भी पीछे नहीं है। जो अंकगणित के आधार पर अपनी राय व्यक्त करते नजर आ रहे हैं। इस तरह की अधिकांश घोषणाएं प्रायोजित मानी जा सकती है। जो मतदान को प्रभावित करने की दिशा में राजनैतिक दलों की चाल भी हो सकती है।
पूर्व में गुजरात में हुए चुनाव परिणाम विकास के मुद्दे को प्रभावित तो कर पाये। इस बार के विधानसभा चुनावों के परिणाम किस तरह के मुद्दे को विशेष रूप से उजागर कर पायेंगे यह तो चुनाव उपरान्त ही पता चल पायेगा। आजकल का भारतीय मतदाता पहले से ज्यादा जागरूक हो चला है। जिसके अन्दर हो रही प्रतिक्रियाओं को सही ढंग से समझ पाना किसी भी राजनीतिक दल या चुनावी विशेषज्ञ के बूते की बात नहीं है। आजकल विशेष रूप से महंगाई, आतंकवाद, क्षेत्रवाद का परिवेश भी मतदाताओं को अन्य मुद्दों के साथ प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह के मुद्दों से गुजरती राजनीति का सही आंकलन कर पाना कठिन ही नहीं मुश्किल है। चुनाव के पूर्व अब तक घोषित सारे आंकलन पलटते नजर ही आये हैं। अनेक मुद्दों के बीच उलझा यह चुनावी समर एक नयी तस्वीर ही पेश करेगा जहां पूर्व में किये जा रहे घोषित सारे आंकलन विफल नजर आयेंगे।

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