Saturday, October 4, 2008

चुनावी मौसमी बयार के नशे में सभी तरबतर

चुनावी मौसमी बयार वातावरण में बह चली है जिसके नशे में यहां प्राय: सभी राजनीतिक दल तरबतर नजर आ रहे हैं। जिसकी झलक हर शहर, गली, मौहल्ले, नगर, महानगर में देखने को मिलने लगी है। शिकवे, शिकायत, मनाने-रिझाने का सिलसिला तेज हो चला है। नहीं पूछने पर भी दावत एवं सहानुभूति का दौर आसानी से देखा जा सकता है। बंद हाथ जुड़ चले हैं, नजरें एक-दूसरे को निहारने लगी है एवं सत्ता की गेंद अपने पाले में लाने की रणनीति का खेल शुरू हो गया है। इस वर्ष आगामी माह के अंतिम सप्ताह में कुछ प्रमुख राज्यों के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो आगामी वर्ष के प्रारंभिक दौर में ही लोकसभा चुनाव की गूंज सुनाई देने की तैयारियां होने लगी है। चुनावी सरगर्मियां तेज हो चली हैं, कहीं-कहीं विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव को साथ-साथ कराने की भी सुगबुगाहट होने लगी है। इस तरह के हालात को स्वार्थ का जामा पहनाये जाने की प्रक्रिया में सभी प्रमुख राजनीतिक दल वैचारिक मंथन में जुट चले हैं। विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव के साथ कराने की मंशा में छिपे स्वार्थ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस तरह के हालात में राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी सोच-समझ है जो स्वार्थ के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव समय पर हों या लोकसभा के साथ हों, सत्ता तक पहुंचने एवं सत्ता पर पुन: कब्जा बनाये रखने की प्रक्रिया में अपने-अपने तरीके से प्राय: देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दल सक्रिय अवश्य हैं। परन्तु जातिगत आधार पर राजनीतिक दलों के बनते जा रहे नये समीकरण सत्ता पर एकाधिकार बनाये रखने वाले प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए चिंता का विषय अवश्य हैं। जातिगत आधार पर उपजे इस समीकरण ने देश को राजनीतिक स्थिति में अस्थिरता के भंवरजाल में अवश्य डाल दिया है। जहां देश में अनेक छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल पनप गये हैं जिनकी पकड़ जातिगत आधार पर दिन पर दिन मजबूत होती जा रही हैं। इस तरह के परिवेश ने राष्ट्रीय दलों के समीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हुए केन्द्र एवं प्रदेश की राजनीति को निश्चित तौर पर अस्थिर कर दिया है। जिससे आज किसी भी एक दल की सरकार का स्वयं के बलबूते पर बन पाना कतई संभव नहीं है।
आज कांग्रेस की जो स्थिति है, सभी के सामने है। देश की राजनीति में एकछत्र साम्राज्य कायम रखने वाली यह पार्टी अल्पमत में आ गई है तथा दिन पर दिन इसका ग्राफ गिरता ही जा रहा है। बदलते जातीय समीकरण में सबसे ज्यादा कमजोर इस पार्टी को ही किया है। इसके अंचल में परंपरागत चले आ रहे अनुसूचित जाति के वोटों पर बसपा ने प्रहार कर अपनी ओर खींचा तो पिछड़ी जाति के मतों पर मंडल आयोग के मार्फत सपा, जनता दल आदि ने कब्जा जमा लिया। कांग्रेस के परंपरागत चले आ रहे मुस्लिम मत भी इस तरह के परिवर्तन से अछूते नहीं रहे। कुछ बसपा की झोली में चले गये तो कुछ सपा के पास। राम मंदिर निर्माण के नाम पर कांग्रेस से जुड़े अधिकांश ब्राह्मण्ा मत भी कांग्रेस से छिटक कर भाजपा की झोली में जा गिरे। इस तरह के उत्तर भारत के दो बड़े प्रान्त बिहार एवं उत्तरप्रदेश से कभी एक नंबर पर परचम लहराने वाली राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस अल्पमत में आ गई। वर्तमान में भी इन दो राज्यों में इस पार्टी के जनाधार में कोई खास परिवर्तन नहीं दिखाई दे रहा है। जातीय समीकरण के कारण इस पार्टी के बिखरे वोट अभी भी विभिन्न क्षेत्रीय दलों की झोली में अटके पड़े हैं। इस तरह के हालात निश्चित तौर पर लोकसभा के दौरान केन्द्रीय राजनीति की स्थिरता को प्रभावित करेंगे।
फिलहाल जिन राज्यों पर विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, उन राज्यों में प्रमुख राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली हैं जहां मुख्य रूप से कांग्रेस एवं भाजपा के बीच ही आमने-सामने की टक्कर है। जातीय समीकरण्ा से देश के विभिन्न भागों में उपजे अन्य राजनीतिक दल सपा, जनता दल, जद (यू), लोकदल, बसपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस, लोकजनशक्ति आदि भी इन राज्यों में अपना पांव टिकाने की कोशिश तो अवश्य करेंगे परन्तु इनका कोई खास जनाधार बिहार एवं उत्तरप्रदेश की तरह अभी इन राज्यों में उभर नहीं पाया है। हां, कांग्रेस एवं भाजपा के बीच के समीकरण को प्रभावित करने की इनकी वस्तुस्थिति उभरकर अवश्य सामने आ सकती है। जिस पर सत्ता के करीब पहुंचने एवं दूर होने का गणित टिका है। विधानसभा चुनाव से प्रभावित राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है तो दिल्ली में कांग्रेस की सरकार। इन राज्यों के राजनीतिक परिदृश्य भी अलग-अलग हैं। दिल्ली में दो बार कांग्रेस की सत्ता होने एवं केन्द्र में भी कांग्रेस के प्रभुत्व वाली सरकार होने से आम जनमानस के बीच उभरे असंतोष का गणित राजनीतिक परिदृश्य में उलटफेर कर सकता है। राजस्थान के परिदृश्य में वर्तमान शासित सरकार भाजपा के कार्यकाल के दौरान राज्य में रोजगार क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी हुए विकास एवं कर्मचारियों को संतुष्ट रखने की रणनीति फिर से इसी सरकार की वापसी के परिवेश को उजागर तो कर रही है, परंतु चुनाव के दौरान टिकट वितरण से उपजे असंतोष एवं आरक्षण आंदोलन से उभरे परिवेश अनुमानित सीट के आंकलन को अवश्य प्रभावित कर सकते हैं। विपक्ष में बैठी कांग्रेस की नजर अवश्य सत्ता की ओर है परन्तु नेतृत्व के नाम अटके दांवपेच एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नीति से भड़के कर्मचारियों की अपरिवर्तनीय मनोदशा का प्रभाव कांग्रेस के मतों पर पड़ना स्वाभाविक है। इसके साथ ही प्रदेश में उभरे क्षेत्रीय दल बसपा, सपा, लोकदल आदि के मत भी मुख्य रूप से इसी पार्टी को प्रभावित करेंगे। राज्य में तीसरे मोर्चे की प्रासंगिकता की चर्चा भी मुखर होती दिखाई देने लगी है। प्रदेश के जाट नेता जहां अपना प्रभुत्व उभारने में लगे हैं वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम से जुड़े मत छिटक जाने का भी खतरा इस पार्टी के लिये बरकरार है। इस पार्टी के सक्रिय राजनीति में रहे तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह के अलग-थलग होने का भी प्रतिकूल प्रभाव चुनाव के दौरान पड़ सकता है। इस तरह प्रदेश में कांग्रेस के लिए अनेक चुनौतियां सामने हैं जहां विकास के नाम पर फिलहाल भाजपा फिर से सत्ता की गेंद को अपने पाले में लाने के प्रयास में सफल होती दिखाई दे रही है। इस दल को भी अधिकांश निष्क्रिय सिपहसालारों की पृष्ठभूमि से खतरा बना हुआ है। जो पास आते-आते सत्ता की गेंद को भी उछाल सकता है। इस तरह की स्थिति पर भी मंथन जारी है। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ दोनों प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य राजस्थान से अलग-थलग हैं पर राजस्थान की स्थिति भाजपा के लिए इन दोनों राज्यों से बेहतर मानी जा रही है। जातीय समीकरण पर आधारित चुनावों का गणित कब गड़बड़ा जाय, कह पाना मुश्किल है। पूर्व घोषित सर्वेक्षण के आंकलन मौन जनता के गर्भ में छिपे निर्णय से हमेशा भिन्न देखे जा रहे हैं। जिसके कारण फिलहाल किसी भी राजनीतिक दल के पास सत्ता की गेंद होने का स्पष्ट स्वरूप परिलक्षित नहीं हो रहा है। इस विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा नेतृत्व को लेकर स्पष्ट है, वहीं कांग्रेस भटक रही है। इस तरह का परिवेश भी राजनीतिक गणित को प्रभावित कर सकता है। चुनावी मौसमी की इस बयार में सभी मदहोश हैं जो ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता की गेंद को अपने पाले में लाने की रणनीति में सक्रिय हो चले हैं।


स्वतंत्र पत्रकार, डी-9, IIIए, खेतड़ीनगर-333504 (राज.)

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