वतर्मान हालात में सभी को आरक्षण देना समय की मांग !
-डॉ. भरत मिश्र प्राची
देश की
आजादी
के
बाद
गरीबी
की
रेखा
से
नीचे
दबे
तबकों
के
सामाजिक
एवं आर्थिक उत्थान के लिये लागू
आरक्षण
आज
विकृृत
रूप
धारण
कर
पूरे
देश के
समक्ष
संकट
पैदा दिया
है
जहां
इसका
आधार
अब
गरीबी
न
होकर
जातिगत
पैमाना
हो
गया
है।
जो
जातियां
इस
आरक्षण
के
पैमाने
में
एक
बार
आ
चुकी
है,
उनके
सामाजिक एवं आर्थिक स्तर
पर
उत्थान
होने
के
बाद
भी
इस
परिवेश से
बाहर
नहीं
निकलना
चाहती बल्कि इस
आरक्षण
का
लाभ
लेने
के
लिये देश की
अन्य
जातियां
भी
मुखर
हो
चली
है।
जि स
कारण
आज
अनुसूचित जाति ,
जनजाति के
आलावे
पिछड़ा वर्ग ,
अति पिछड़ा वर्ग इस
दायरे
में
आ
गये
है।
जब
से
इस
आरक्षण
का
उपयोग
खुलकर
राजनीतिक
लाभ के
लिये किये
जाने
लगा
है
तब
से
इसे
हटाना
या
इसमें
परिवतर्न
करना
जटिल
हो
गया
है।
यह
समस्या
दिन
पर
दिन
गंभीर
होती
जा
रही
है।
और
आज
इसके
गंभीर
प्रतिकूल
प्रभाव
साफ
-
साफ
देखे
जा
रहे
है।
देश में
जब
से
मंडल
आयोग
लागू
हुआ,
तब
से
आरक्षण
की
मांग
अन्य
जातियों
में
भी
मुखर
हो
चली
।
मंडल
आयोग
के
विरोध
में राजस्थान में जब से राजनीतिक लाभ पाने के लिये जाटों को पिछड़े वर्ग के तहत आरक्षण से जोड़ा गया तब से इस वर्ग में इस सविधा का लाभ उठा रही जातियों में आक्रोश का
स्वर
उभर
आया।
इस वर्ग के गुजर विरोध
स्वरूप
सड़क
पर
उतर
आये,
जिससे
सामाजिक एवं आर्थिक रूप से जो राज्य को नुकसान हुआ। उसकी भरपाई कर पाना मुश्किल है।
धीरे
-
धीरे
इस
तरह
के
आंदोलन
अन्य
राज्यों
एवं
अन्य
अनारक्षित जातियों
में
उभरने
लगे,
जिससे देश को
काफी
आर्थिक नुकसान
हर वर्ग को उठाना
पड़
रहा
है।
गुजरात
में
पटेल
समुदाय
आरक्षण
की
मांग
को
लेकर
सडक
पर
उतर
आया
तो
हरियाणा
,
उतर प्रदेश एवं राजस्थान के भरतपुर , धौलपुर आदि जिले के अनारक्षित जाट इस मांग को लेकर सड़क पर उतर आये है। वतर्मान में इस आंदोलन के तहत इनके उग्र रूप को देखा जा सकता है जहां इस आंदोलन से आवागमन तो प्रभावित हो ही रहा है, राजकीय सामानों को नुकसान पहुंचाते हुए आंदोलन धीरे - धीरे उग्र रूप धारण करता जा रहा है। इस तरह के हालात निश्चित रूप
से
देश के
विकास
में
बाधक
है।
समय
-
समय
पर
आरंक्षण
की
मांग
अन्य
अनारक्षित जातियों
में
भी
उभरती
देखी
जा
सकती
है। आरक्षण
दर आरक्षण की आग दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है और राजनैतिक दल इसकी तपस में अपनी सियासती रोटी सेंकने में मशगूल
है।
इसी
कारण
इसका
सही
निदान
आज
तक
नहीे
हो
पाया
है।
आरक्षण
अब
स्वयं
में
समस्या
का
रुप
ले
चुका
है।
इस
देश में
आरक्षण
गरीबी
से
न
जुड़कर
राजनीतिक
परिवेश से
जुड़
चला
है।
यदि गरीबी
की
बात
की
जाय
तो
देश की
कोई ऐसी
जातियां
नहीं
है
िजसमें
गरीब
लोग
नहीं
हो
।
आज
हर
जातियों
में
आर्थिक पिछड़ेपन
से
जुड़े
लोग
है
तो
सम्पन्न
भी।
आर्थिक रूप
से पिछड़े
लोगों
को
आरक्षण
से
जोड़ा
जाना
चाहिए,
आर्थिक सम्पन्न
लोगों
को
इस प्रक्रिया से
अलग
किया
जाना
चाहिए
चाहे
वे
किसी
जाति , धर्म के
हो
पर
इस देश में
राजनीति क कारणों से ऐसा
कर
पाना
संभव
नहीं
है।
इस
तरह
के
हालात
में
संविधान
में आवश्यक संशोधन
कर
अनारक्षित समस्त
जातियों
को
भी
आरक्षण
प्रणाली
से
जोड़
दिया
जाना
चाहिए जिससे
इस
परि वेश से
उभरते
आंदोलन
को
रोका
जा
सके
।
आर्थिक सम्पन्न
लोगों
को
जि स
तरीके
से
गैस
सब्सीडी
से
अलग
किया
जा
रहा
है
,
वैसे
ही
आर्थिक सम्पन्न
लोगों
को
आरक्षण
से
अलग
करने
के
प्रावधान
संविधान
में
लाना
चाहिए।
आज
आरक्षण पूर्ण रूप
से
आर्थिक आधार
पर
न
होकर
जातिगत
आधार
हो
चुका
है,
जिसके
कारण
आरक्षित जातियों
में
सम्पन्नता
आने
पर
ज्यों
का
त्यों
बना
हुआ
है।
इस तरह के हालात निश्चित रूप
से
अन्य
जातियों
में
आक्रोश के
कारण
बनते
जा
रह
है।
आरक्षण
से
लेकर
उभरते
हालात
को
देखते
हुए
वतर्मान
समय
में
इसे
हटाने
की पृष्ठभूमि के
वजाय
सभी
को
आरक्षण
से
जोड़ना
समय
की
मांग
हो
गइर्
है,
जि सके
लि ये
संवि धान में आवश्यक संशो धन
िकये
जाने
की आवश्यकता है।
फ्लैट नं. एफ- 2, प्लॉट नं. 120, सत्यम्् ि”ावम्् िबिल्डंग, जयकरनी नगर, नेवारू रोड, झोटवाड़ा, जयपुर (राज.)
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