Wednesday, March 2, 2016

असुरक्षित दिखाई दे रहा है वृृद्धजनों का जनजीवन !

असुरक्षित  दिखाई  दे रहा है वृृद्धजनों का जनजीवन !
-डॉ. भरत ​मिश्र प्राची
      जब से देश  भूमंडलीयकरण के चपेट में आया तब से वृृद्धजनों का जनजीवन असुरक्षित दिखाई  देने लगा। ​जिस तरीके से यह प्रभाव हावी होता जा रहा है , यह समस्या और गंभीर होती जा रही है। इस समस्या के समाधान के ​लिये भूमंडलीयकरण से प्रभा​वित देश  वृृद्धाश्रम, पें जैसी व्यवस्था देकर ​निदान पाने की को​शिश  अवश्य  कर रहे है ​जिसकी छत्रछाया की झलक हमारे देश  में देखी जा सकती है पर इस छत्रछाया से राहत ​किस रुप में वृृद्धजनों को पहुंच रही है, सभी के सामने है। यहां वृृद्धजनों के ​लिये सुरक्षित   तो वृृद्धाश्रम है सही देख रेख उन्हें पेंसन  भी नाम मात्र की दी जाती है, जो ​किसी को मिलती  है ​किसी को नहीं। भूमंडलीयकरण के प्रभाव से बैंक ब्याज दर में ​दिन पर ​दिन आती ​गिरावट  से सेवाकाल उपरान्त वृृद्धजनों द्वारा भ​विश्य में जीवनयापन की दृष्टि  से एम आइ एस के तहत एक मुस्त जमा की गई  राशि  से प्र​तिमाह आने वाली ब्याज रा​शि  में कमी आती जा रही है। ​जिससे ​दिन पर ​दिन बढ़ती महंगाई  के आगे यह रा​शि  छोटी होने लगी है। भूमंडलीयकरण के प्रभाव से एकल प​रिवार की ​बिखरती परिभाषा  वृृद्धजनों को परिवार से अलग - थलग करती जा रही है जहां ये उपेक्षा के शिकार  पहले से ज्यादा होने लगे है। जीवनयापन के ​लिये शुरू  की गई  पें योजना भी ऊॅट के मुंह में जीरा का फोरन सदृृश  है। इस तरह के हालात में देश  के वृृद्धजन अपने बचे जीवन को ​कि स तरह संवार पायेंगे ​किसी को ​चिंता  नहीं।
      सभी भूमंडलीयकरण के प्रभाव में देश  की अस्मिता  को ​विकास के नाम ​विदेशियों के हवाले करते जा रहे है। जिसके  कारण देश   को सही मामले में ​विक​सित करने वाले उद्योग तहस - नहस हो रहे है, कृषि  योग्य भू​मि  पर ​विशालकाय नये - नये भवन बनते जा रहे है। गांव उपेक्षित  हो रहे है। नये - नये नगर बस रहे है। भारतीय बाजार पर विदेशी  सामान हावी होते जा रहे है। आज देश  का अ​धि कांश  धन ​विदेश  में जा रहा है।
   आज गुलामी की प​रिभाषा  बदल गई  है। अब  सीधे तौर पर दूसरे देशों  को गुलाम बनाकर भूमंडलीयकरण के प्रभाव से आ​र्थिक  गुलाम बनाते जा रहे है। ​जि सके कारण गुलाम देश  का विकसित  हो पाना कतई  संभव नहीं इस तरह की गुलामी सीधे तौर की गुलामी से ज्यादा खतरनाक सा​बित हो सकती है। भूमंडलीयकरण के प्रभाव से प्रभावित आ​र्थिक  गुलामी देश  को धीरे - धीरे अपंगता की ओर ले जाती हैं विनिवेश  इसका साक्षात उदाहरण है। जब से देश  में विनिवेश का दौर चला है, देश  में भ्रश्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई  बढ़ी है। बाजार पर विदेशी  साम्राज्य स्था​पित हुआ है। समाजवादी दृष्टिकोण  में भी परिवर्तन  आया है। इस तरह के हालात में देश  ​विकास के नाम नये गुलामी के दौर से गुजरता नजर आने लगा है। जहां सबसे ज्यादा बृृद्धजनों का जनजीवन असुरक्षित  नजर रहा है।
 इस ​दिशा  में मंथन होना चाहिए। भूमंडलीयकरण के प्रभाव से देश  को ​किस प्रकार आर्थिक  गुलामी के ​शिकंजे से बाहर ​निकालकर  देश  को सही मायने में ​विकास पथ पर ले जाया जाय। ​जिससे भारतीय बाजार , उद्योग  आत्म​निर्भर  होकर ​विकास की ओर पग बढ़ा सके। जहां भारतीय मुद्रा का क्षय हो
  सेवाकाल उपरान्त वृृद्धजनों द्वारा भ​विश्य में जीवनयापन की दृष्टि  से एम आइ एस के तहत एक मुस्त जमा की राशि  से प्र​तिमाह आने वाली ब्याज राशि  इस प्रकार हो ​जिससे जीवनयापन की परिभाषा  साथर्क हो सके। इस दिशा  में ​गिरती  ब्याज दर को शीघ्र रोका जाना चा​िहए। साथ ही बृृद्धापेंश  की राशि  महंगाई  के अनुरुप हो ​जिससें सामान्य जीवनयापन के साथ - साथ सुबह - शाम  की रोटी नसीब हो सके। इस तरह के हालात के ​लिये देश  को आत्म निर्भर  बनाना भी जरूरी है।
 भारत गांवों का देश  है जहां की संस्कृृृ​ित अपने आप में ​निराली है पर भूमंडलीय परिवेश  के कारण ​दिन पर ​दिन इसमें गिरावट  आती जा रही है। यदि  इस गिरावट   को हम रोकने में सक्षम हो सके एवं गावों की संस्कृृ​ति  की रक्षा कर सके तो वृृद्धाश्रम की जरूरत इस देश  को नहीं हो सकती
-स्वतंत्र पत्रकार, डी-96, IIIए, खेतड़ीनगर- 333504 (राज.). Email : prachi120753@gmail.com
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