Tuesday, September 9, 2008

हिंदी के विकास में जनसंचार माध्यमों की भूमिका

हर देश की अपनी एक खास भाषा होती है जिसमें सभी देशवासी संवाद करते हैं। जिसमें उस देश की विशिष्ट पहचान समायी नजर आती है। इस दिशा में विश्व के अनेक विकसित देश रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन आदि के भाषायी प्रयोग के स्वरूप को देखा जा सकता है। भारत में उन्हें विकसित देशों में से एक महत्वपूर्ण देश है। जहां की संस्कृति आज भी इन विकसित देशों से सर्वोपरि है। परन्तु भाषायी प्रयोग की दिशा में स्वतंत्रता के साठ दशक उपरांत भी आज तक इस देश को केवल राष्ट्रभाषा का दर्जा देने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाये हैं। जहां आज भी देश के प्रमुख उत्सवों पर आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों के संवाद की भाषा अंग्रेजी ही बनी हुई है। संसद के अधिकांश क्षण प्रश्नोत्तर काल के दौरान अंग्रेजियत पृष्ठभूमि को उभारते नजर आ रहे हैं। जबकि व्यवहारिक तौर पर इस देश में आज भी हिंदी सर्वाधिक बोली एवं समझी जाती है परंतु राजकीय एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि में इसके प्रयोग पर दोहरेपन पृष्ठभूमि को आसानी से देखा जा सकता है। वैसे पहले से इस दिशा में आये अंतराल को भी देखा जा सकता है। जहां हर दिशा में हिंदी बंटती नजर आ रही है। आज हिंदी देश ही नहीं विश्व स्तर पर अपना परचम इस तरह के परिवेश के बावजूद भी लहरा रही है। विश्व की चर्चित भाषाओं में आज यह तीसरे स्थान पर पहुंच चुकी है। इस तरह के विकास पथ पर निरंतर बढ़ रहे इसके पग को सबलता प्रदान करने की दिशा में जनसंचार माध्यमों की भूमिका सदा से ही अग्रणी रही है। इसके इतिहास के आईने को देखें जहां यह देश वर्षों तक गुलामी की जंजीर में जकड़ा रहा, सात समुंदर पार की अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व वर्षों तक यहां हावी रहा और आज भी कहीं न कहीं इसका स्वरूप देखने को मिल ही जाता है। स्वाधीनता के कई वर्ष तक राष्ट्रभाषा के रूप में घोषित हिंदी उपेक्षित जीवन को सहती रही। राजनीतिक स्तर पर उपजे विरोध को झेलती रही। पर आज इसके विकसित रूप में भारतीय जनजीवन का स्वरूप परिलक्षित होने लगा है। इस तरह के स्वरूप को उजागर होने में जनसंचार माध्यमों की भूमिका निश्चित तौर पर सदैव सक्रिय बनी रही है। 
जनसंचार माध्यमों में मुख्य रूप से प्रिन्ट, दृश्य एवं श्रव्य की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। प्रिन्ट मीडिया का इतिहास काफी पुराना है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हिंदी भाषा में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं ने देश को आजाद कराने की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अहम् योगदान दिया है। यहां के लोक कवि एवं साहित्यकारों ने हिंदी भाषा में अपनी रचनाएं जन-जन तक पहुंचा कर हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। स्वाधीनता काल की प्रकाशित पत्रिका 'सरस्वती', 'मार्तण्डय' आदि के सक्रिय योगदानों को देखा जा सकता है। हिन्दू, आज, आर्यावर्त, सन्मार्ग, नवज्योति, हिन्दूस्तान, विश्वामित्र, नवभारत, स्वतंत्र भारत जैसे अनेक चर्चित हिन्दी दैनिक समाचार पत्रों ने हिंदी के विकास में जो भूमिका निभायी है उसे भुलाया नहीं जा सकता। आज हिंदी के विकास में देश के विभिन्न अंचलों से हजारों पत्र-पत्रिकाएं सक्रिय भूमिका निभा रही है। राजस्थान पत्रिका, पंजाब केसरी, दैनिक भास्कर, जागरण, हरिभूमि, सहारा, डेली न्यूज जैसे अनेक समाचार पत्र जहां लाखों पाठकों के घर-घर पहुंच रहे हैं वहीं एक्सप्रेस मीडिया, मीडियाकेयर नेटवर्क जैसे इलैक्ट्रानिक संसाधनों के माध्यम से हिंदी आज देश में प्रकाशित चर्चित दुनिया, सवेरा, जलते दीप, हमारा मुंबई, हिंदी मिलाप, रांची एक्सप्रेस, लोकमत दैनिक समाचार पत्रों द्वारा पूरे देश में हिंदी संवाद को स्थापित करने में सक्रिय भूमिका निभा रही है। आज हिंदी दैनिक समाचार पत्रों के साथ-साथ हजारों साप्ताहिक, पाक्षिक पत्र भी अपनी भूमिका हिंदी के प्रचार-प्रसार में निभा रहे हैं जो गली-गली, गांव-गांव को हिंदी से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं। हजारों पत्रिकाएं भी इस दिशा में अपना कार्य कर रही है जिसका प्रभाव सामने है। अंग्रेजी के वर्चस्व से धीरे-धीरे हिंदी को मुक्ति मिलती दिखाई देने लगी है। कभी यहां हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए बना हिंदी अधिकारी अपने आपको हिंदी अफसर कहना बेहतर समझता था आज वही अपने आपको गर्व के साथ हिंदी अधिकारी कहते नजर आता है। यह जनसंचार के माध्यम से हिंदी के बढ़ते चरण का ही प्रभाव है।
जनसंचार का श्रव्य माध्यम भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका प्रारंभ से ही निभाता रहा है। इस दिशा में आकाशवाणी के बीबीसी लंदन की हिंदी समाचार सेवा प्रभार की भूमिका को देखा जा सकता है। जिससे देश का अधिकांश समुदाय श्रव्य माध्यमों से भी जुड़ा हुआ था। आकाशवाणी का यह केन्द्र आज भी सर्वाधिक लोकप्रिय है। जिसका परिणाम यह रहा कि हिंदी लाखों लोगों के बीच श्रव्य के माध्यम से संपर्क की भाषा बन गई। आज इलैक्ट्रानिक युग में इलैक्ट्रानिक मीडिया ने हिंदी के विकास में अभिनव एवं अद्भुत पृष्ठभूमि बनाई है। आज तक, स्टार प्लस, जीटीवी, सहारा, दूरदर्शन, ईटीवी आदि नेटवर्क हिंदी में सर्वाधिक कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। इनके द्वारा प्रसारित हिंदी धारावाहिक के माध्यम से आज करोड़ों जनसमुदाय हिंदी से जुड़ता चला जा रहा है। घर-घर की कहानी, महाभारत, रामायण, कृष्णलीला, सास भी कभी बहू थी, दुल्हन आदि की बढ़ती लोकप्रियता ने सभी नेटवर्कों को हिंदी के प्रति कार्य करने की अद्भुत प्रेरणा दी है। इस परिवेश ने आज हिंदी को विश्व स्तर तक पहुंचा दिया है। आज संसद में भी हिंदी सुगबुगाने लगी है तथा अंग्रेजी के प्रति मोह प्रदर्शित करने वालों की नजर धीरे-धीरे झुकने लगी है। जनसंचार माध्यमों की भूमिका ने हिंदी को जन-जन से जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य किया है। आज देशभर में सर्वाधिक हिंदी की समाचार पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं एवं दूरदर्शन पर हिंदी धारावाहिक एवं चलचित्र प्रदर्शित हो रही हैं। जनसंचार का यह फैलाव निश्चित तौर पर हिंदी को उस परिवेश से बाहर निकाल लाया है जहां हिंदी बोलने एवं लिखने में झिझक होती थी।
आज भी हिंदी के प्रति उभरते दोहरी मानसिकता के परिवेश को देखा जा सकता है परन्तु जनसंचार के माध्यम से हिंदी के बढ़ते कदम के आगे धीरे-धीरे इस तरह की मानसिकता में बदलाव भी आता दिखाई दे रहा है। विश्व स्तर पर प्रारंभ में हिंदी में दिये गये भाषणों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य भी जनसंचार माध्यमों ने ही किया। जिससे हिंदी आज जन-जन की भाषा बनती दिखाई देने लगी है। हिंदी के आवेदन पत्र एवं आवेदन पत्र पर हिंदी के हस्ताक्षर तथा हिंदी में ही किये गये अनुमोदन टिप्पणी का स्वरूप इस बात को परिलक्षित करने लगा है कि अब हिंदी दोहरी मानसिकता के चंगुल से निकलकर स्वतंत्र स्वरूप धारण करते हुए भारतीयता का प्रतीक बनती जा रही है। यह परिवर्तन निश्चित तौर पर हिंदी के विकास में जनसंचार माध्यमों की महत्वपूर्ण भूमिका का ही जीता-जागता उदाहरण है। आने वाले समय में यह अप्रासंगिक राजनीतिक क्षितिज से ऊपर उठकर संपूर्ण भारत का सिरमौर स्वरूप धारण करते हुए हमारी अस्मिता की पहचान शीघ्र बन जायेगी ऐसा विश्वास जागृत हो चला है। 

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