भोजपुरी रचना
जे पे रहल गुमान !
फुलवा जइसन देहिया के का हो गईल राम ,
सुखी गईल कांटा जइसन ,जे पे रहल गुमान ।
ना सोचनी कबो अइसन दिन आई जिनगीं में ,
उड़त रहनी ख्वाब में,ना दिहनी बिल्कुल ध्यान ।
अनाप सनाप जे भी मिलल,चुप चाप खा गइनी,
मेहनत न कइनी , दिहनी देहिया के आराम ।
जे भी रहल पास में , मौज - मस्ती में उड़वनी,
सोचनी ना हम, बुढ़ापा में कइसे चली काम ।
सुखवा के दिन में ,जे साथे -साथे घुमत रहल ,
नजर अब आवत नइखन,सब भूल गईले राम।
केकरा के कहीं आपन , केकरा के कहीं गैर ,
जे भी आइल पास में हमरा ,लुटत गइल राम।
जवानी के जोश में ,सबकुछ भूलत गइनी हम ,
आगे -पीछे का होइ , ना सोचनी कबो राम ।
फुलवा जइसन देहिया के का हो गईल राम ,
सुखी गईल कांटा जइसन ,जे पे रहल गुमान ।
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