Monday, June 2, 2008

स्वार्थमय परिवेश से उलझता देश

जहां देश आज आतंकवाद, आरक्षण की आग, अलगाववाद के गंभीर संकट के बीच से गुजर रहा है वहीं इन समस्याओं से निजात दिलाने के बजाय स्वार्थ की राजनीति नजर आ रही है। निश्चित तौर पर इस तरह का परिवेश देश की अस्मिता, एकता, अखंडता के लिए घातक बनता जा रहा है, जहां देश एक बार फिर से बिखरने के कगार पर खड़ा दिखाई देने लगता है।
अभी हाल ही में उभरे आतंकवाद से प्रदेश गंभीर चुनौती के बीच जूझ ही रहा था कि आरक्षण की तेज आग ने उसे चपेट में ले लिया। आतंकवाद के कारणों का निदान तो दूर रहा, पूरी व्यवस्था इस तरह की आकस्मिक समस्या के बीच उलझकर रह गई। स्वार्थमय राजनीति के बीच राजस्थान प्रदेश में गुर्जर को अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की मांग को लेकर उभरी आरक्षण की आग बुझने के बजाय दिन पर दिन बढती ही जा रही है जिसकी चपेट में राजस्थान प्रदेश के सीमांत प्रांत भी आ चले हैं। प्रदेश के भरतपुर जिले से भड़की यह आग आज प्रदेश के गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र को प्रभावित करती हुई दिल्ली, उत्तरप्रदेश तक पहुंच गई है जहां का जनजीवन अशान्त हो चला है। इस तरह की मांग को, जिसका ठोस समाधान किसी के पास दिखाई नहीं दे रहा हो, प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने से स्वार्थमय राजनीति की उभरती पृष्ठभूमि को नकारा नहीं जा सकता। जो सभी के लिए अंतत: घातक ही साबित होगी। वोट की स्वार्थमय राजनीति के तहत इस तरह के परिवेश को जिस नजरिये से देखा जा रहा है, समाधान की कहीं गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। एक दूसरे पर दोषारोपण की राजनीति हालात को गंभीर बनाने में घी में आग का काम कर रही है। इस तरह के हालात निश्चित तौर पर आतंकवादियों के मंसूबे को भी अप्रत्यक्ष रूप से पलायन कर गये, जिनके बारे में छानबीन का प्रसंग स्वत: ही गौण हो गया। आरक्षण की आग के बीच बिगड़े हालात का लाभ आतंकवादी भी कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष रूप से ऐन-केन-प्रकारेण उठाने की फिराक में लगे हुए अवश्य हैं जिसपर सोच पाना वर्तमान हालात में कहीं नजर नहीं आता, निश्चित तौर पर इस तरह के परिवेश से आतंकवादियों को स्वत: संरक्षण मिलता दिखाई दे रहा है जो देशहित में कदापि नहीं है। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किये जाने की वकालत करना भी वर्तमान हालात में प्रासंगिक नहीं माना जा सकता है। देश के सभी राजनीतिक दलों की गैर राजनीतिक सोच की आज महती आवश्यकता है। जो इस तरह की गंभीर समस्या से निजात दिला सके।
आतंकवाद, अलगाववाद, आरक्षण आदि से उभरे हालात के शिकार सबसे ज्यादा निर्दोष ही होते हैं। आज स्वहित में इस तरह के हालात पर उभरती राजनीति को नकारा नहीं जा सकता जिसके कारण इस तरह की समस्याएं दिन पर दिन गंभीर और घातक स्वरूप धारण करती जा रही हैं। वोट की राजनीति ने इस तरह के हालात में उपजी समस्याओं से निजात दिलाने के बजाय और ही ज्यादा उलझा दिया है जहां क्षण प्रतिक्षण निर्दोष जानें जा रही है एवं अरबों-खरबों का सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान होता साफ-साफ दिखाई दे रहा है जिसकी भरपाई कर पाना कई वर्षों तक संभव नहीं। देश आज इस तरह की गंभीर समस्याओं के साथ-साथ आंतरिक आर्थिक विषमता के दौर से भी गुजर रहा है जहां महंगाई बढ़ती जा रही है। आतंकवाद, अलगाववाद, आरक्षण से उपजे हालात भी महंगाई को बढ़ाने में सहायक सिध्द हो रहे हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
आतंकवाद, अलगाववाद, आरक्षण आदि से निजात पाने के ठोस कारगर उपाय राजनीतिक दलों की स्वहित रहित भावना से उपजी गैर राजनीतिक सोच में समाहित है। इस तरह की समस्याओं को उभारने में राजनीतिक दलों की स्वार्थमय राजनीति की पृष्ठभूमि काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। महाराष्ट्र में अलगाववाद से जुड़े स्वहित की राजनीति से प्रेरित क्षेत्रवादी नारों की गूंज, असम की अशांति एवं भयभीत परिवेश, वोट की राजनीति के तहत ऐन-केन-प्रकारेण्ा समय-समय पर आरक्षण के प्रति उपजे समर्थन की भावना एवं आतंकवादियों को अप्रत्यक्ष रूप से बचाने की मुहिम आदि आज निश्चित तौर पर देश को अशांत करने पर तुले हैं। इस तरह की गंभीर समस्याओं का निदान गैर राजनीतिक तरीके से ही किया जा सकता है। आतंकवाद, अलगाववाद, आरक्षण देश के विकास में बाधक ही नहीं, अशांति के मूल कारण हैं। इनकी आग सभी के लिए घातक है। राजनीतिक लाभ हेतु इससे उपजे हालात को हवा देना, देश के लिए अहितकारी ही साबित होगा, इस तथ्य को समझा जाना चाहिए। देश सभी का है, एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने व रहने का अधिकार सभी को है। इस तरह के हालात पर ओछी राजनीति किया जाना राष्ट्रहित में कदापि नहीं माना जा सकता। आरक्षण से देश की प्रतिभाएं कुंठित होती है एवं जातीय संघर्ष को एक नया आयाम मिलता है, आरक्षण से उपजे हालात साफ-साफ बयां कर रहे हैं। आरक्षण आज स्वार्थप्रेरित छूत का रूप धारण कर चुका है जिससे मुक्ति पाना वर्तमान स्वार्थमय परिवेश में संभव नहीं दिखाई देता। इस तरह के हालात से निजात पाने का ठोस उपाय सभी राजनीतिक दलों को गैर राजनीतिक तरीके से ढूंढना चाहिए। आरक्षण समाप्त करने की वकालत तो नजर आती है परन्तु वर्तमान हालात में इससे मुक्त होना संभव नहीं दिखाई देता। इस तरह के हालात में संख्याबल के आधार पर सभी जातियों को आनुपातिक रूप में आरक्षण को बांट देने का बंदरबांट स्वरूप ही निजात दिलाता नजर आ रहा है।
आरक्षण और अलगाववाद के परिवेश आंतरिक स्वार्थप्रेरित राजनीति से जुड़े प्रसंग तो हो सकते हैं जिसका समाधान गैर राजनीतिक सोच के माध्यम से निकाला जा सकता है परन्तु आतंकवाद तो बाहरी शक्तियों द्वारा देश को अशांत करने की दिशा में उपजी प्रक्रिया का स्वरूप है जो सभी के लिए घातक है। स्वार्थमय परिवेश से उभरे आरक्षण, अलगाववाद के बीच देश उलझता जा रहा है। आरक्षण एवं अलगाववाद की लहर आतंकवाद को पनाह न दें, इस तरह के हालात पर सभी राजनीतिक दलों को राष्ट्रहित में एकमत से विचार किया जाना सकारात्मक कदम माना जा सकता है। स्वहित में स्वार्थप्रेरित जनित घटनाएं आम जनजीवन को अशांति के मार्ग पर ढकेल देती है। इस तरह के ज्वलंत हालात जो अप्रत्यक्ष रूप से बाहरी शक्तियों द्वारा जनित आतंकवाद को संरक्षण देने की भूमिका में उभरते दिखाई दे रहे हैं, उसे पग पसारने की प्रक्रिया में किसी भी तरह सहयोग देना राष्ट्रीय अस्मिता पर प्रहार है। देश स्वतंत्र होने के उपरान्त भी आंदोलन के तहत उभरती जा रही परिस्थितियों में किसी भी तरह का बदलाव नहीं आया है। आज भी सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाना तथा आम जनजीवन को तबाह करना आंदोलनीय पृष्ठभूमि में समाया नजर आ रहा है। इस तरह के हालात का असामाजिक तत्वों द्वारा पूर्णरूपेण स्वहित में लाभ उठाया जाना स्वाभाविक है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
आज देश स्वार्थमय परिवेश के बीच दिन पर दिन उलझता जा रहा है। इस तरह के परिवेश को उभारने में यहां के प्राय: सभी राजनीतिक दलों की सोच एवं भूमिका एक जैसी ही है। वोट की राजनीति के तहत सत्ता की गेंद पाने की दिशा में एक दूसरे पर दोषारोपण करने एवं स्वार्थप्रेरित झूठे आश्वासन के जाल में आम जनमानस को उलझाकर जटिल समस्याएं पैदा करने की कला में सभी माहिर हैं। वर्तमान उभरते हालात के बीच इस तरह के परिदृश्यों को साफ-साफ देखा जा सकता है जहां वोट की राजनीति के तहत देश में उभरे आरक्षण एवं अलगाववाद का विकृत रूप आज तक मिट नहीं पाया। स्वतंत्रताउपरांत मात्र दस वर्षों हेतु सामाजिक स्तर से दबे लोगों के ऊपर उठाने की दृष्टि से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के तहत आरक्षण आज तक हट ही नहीं पाया बल्कि इस सूची में देश की अन्य जातियां भी पिछड़े के नाम पर शामिल कर ली गई तथा शेष जातियों द्वारा इसमें शामिल किये जाने की मांग भी की जा रही है। इस दिशा में स्वहित में उभरे राजनीतिक दलों की स्वार्थप्रेरित परिवेश को देखा जा सकता है, यहीं हालात अलगाववाद के साथ भी है जहां वोट की राजनीति के तहत कभी भाषा, कभी क्षेत्र, कभी संस्कृति का जामा पहनाकर लोगों को उलझा दिया जाता है। इस तरह की स्वार्थमय परिवेश के बीच देश उलझता जा रहा है।

-स्वतंत्र पत्रकार, डी-9, IIIए, खेतड़ीनगर-333504 (राज.)

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